शुक्रवार, 18 सितंबर 2020

मैं समय हूं

कभी समकालीन सरोकार का लोगों को इंतज़ार रहता था। हर महीने कुछ नया लेकर आती थी। कुछ बड़े नाम। कुछ बड़ी बातें। नए रास्ते। नयी मंजिलें। बहुत उत्साह से, बड़ी मेहनत से मैं यह मासिक पत्रिका निकालता था। बहुत लगाव था उससे पर आर्थिक कारणों से एक वर्ष के आगे जारी रखना सम्भव नहीं हो पाया। कई बार आप चलते हैं कहीं के लिए और पहुँच जाते हैं कहीं। कभी लगता है जहाँ जा रहे थे, उससे ज़्यादा ख़ूबसूरत जगह पर आ गए, कभी लगता है, अरे कहाँ आ फँसे। यहाँ कुछ भी निश्चित नहीं है। यह अच्छी बात है। अनिश्चितता का अपना आनंद है लेकिन अनिश्चितता ही जीवन बन जाए तो ठीक नहीं। किसी तलाश में अनिश्चय की अपनी भूमिका होती है। वह ठहरने और सोचने का मौक़ा देता है लेकिन कोई भी अनिश्चय किसी निश्चय के लिए हो तो उसकी सार्थकता है। मैं महसूस कर रहा हूँ कि मैं किसी निश्चितता से अनिश्चितता की ओर बढ़ रहा हूँ। यह अच्छे संकेत हैं। अच्छा क्या होगा, मुझे पता नहीं पर इस परिस्थिति में समकालीन सरोकार की याद आना कोई अर्थ ज़रूर रखता है। आइए इस अर्थ के खुलने की प्रतीक्षा करते हैं और तब तक यह कविता पढ़ते हैं .... 


मैं समय हूँ
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वर्तमान में विलीन होकर भी
इतिहास बना रहता है हमेशा
वह भविष्य में भी चला जाता है बेरोक-टोक
इतिहास ने हमें बंदर से मनुष्य बनाया 
गुर्राने की जगह बोलना सिखाया
सभ्य बनाया, सहना सिखाया

जैसे इतिहास मिट्टी में दबा रहता है 
नदियों में बहता रहता है
गुफाओं में पड़ा रहता है
और किसी भी समय बाहर निकलकर
अपने समय की भाषा में बोलने लगता है
वैसे ही वर्तमान भी इतिहास की किसी
अबूझ लिपि में छिपा हुआ होता है
भविष्य हजारों साल पुराने भोजपत्र के 
किसी पृष्ठ पर फड़फड़ा रहा होता है

मैं कभी-कभी पाता हूँ अपने आप को
सिंधु घाटी के टूटे-फूटे नगरों में
अपने पांवों के निशान ढूंढते हुए
भले मुझे अपने पुरखों की 
भाषा समझ में न आती हो
लेकिन वहां सब-कुछ अपना लगता है
कभी- कभी फंस जाता हूँ 
आग के तूफानों में, तेजाबी बारिश में
उलटती- पलटती चट्टानों के बीच दब जाता हूँ
और जिंदा रहता हूँ लाखों साल तक

जब कभी किसी बड़ी दुर्घटना
किसी भूकम्प या ज्वालामुखी विस्फोट 
के कारण बाहर सतह पर आ जाता हूँ
या किसी डार्विन की निगाहें ढूंढ लेती हैं मुझे
कहानियां सुनाने लगता हूँ अपने 
इतिहास की, अपने भविष्य की

मैं इतिहास हूँ, मेरे भीतर 
वर्तमान और भविष्य के बीज सुरक्षित हैं
वर्तमान हूँ, मेरे भीतर इतिहास बिखरा पड़ा है

भविष्य की अनन्त संभावनाएं दबी पड़ी हैं
भविष्य हूँ, मेरे भीतर इतिहास है, वर्तमान है
लेकिन एक जादू भी है मेरे पास  
जो इतिहास और वर्तमान को
भविष्य में बदल देता है
जो लगातार वर्तमान में बदलते हुए भी
अछोर और अगम्य बना रहता है

मैं इतिहास और वर्तमान में 
एक साथ प्रवेश कर सकता हूँ
इतिहास के अन्याय को 
सबक में बदल सकता हूँ
वर्तमान के अन्याय के लिए सजा दे सकता हूँ
इतिहास के पीछे देख सकता हूँ
भविष्य के आगे भी देख सकता हूँ
मैं भविष्य होकर भी केवल भविष्य नहीं हूँ
समय हूँ, ज्ञात और अज्ञात में 
अविरल स्पंदित होता हुआ



17/9/2020






 

2 टिप्‍पणियां:

हां, आज ही, जरूर आयें

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