कभी समकालीन सरोकार का लोगों को इंतज़ार रहता था। हर महीने कुछ नया लेकर आती थी। कुछ बड़े नाम। कुछ बड़ी बातें। नए रास्ते। नयी मंजिलें। बहुत उत्साह से, बड़ी मेहनत से मैं यह मासिक पत्रिका निकालता था। बहुत लगाव था उससे पर आर्थिक कारणों से एक वर्ष के आगे जारी रखना सम्भव नहीं हो पाया। कई बार आप चलते हैं कहीं के लिए और पहुँच जाते हैं कहीं। कभी लगता है जहाँ जा रहे थे, उससे ज़्यादा ख़ूबसूरत जगह पर आ गए, कभी लगता है, अरे कहाँ आ फँसे। यहाँ कुछ भी निश्चित नहीं है। यह अच्छी बात है। अनिश्चितता का अपना आनंद है लेकिन अनिश्चितता ही जीवन बन जाए तो ठीक नहीं। किसी तलाश में अनिश्चय की अपनी भूमिका होती है। वह ठहरने और सोचने का मौक़ा देता है लेकिन कोई भी अनिश्चय किसी निश्चय के लिए हो तो उसकी सार्थकता है। मैं महसूस कर रहा हूँ कि मैं किसी निश्चितता से अनिश्चितता की ओर बढ़ रहा हूँ। यह अच्छे संकेत हैं। अच्छा क्या होगा, मुझे पता नहीं पर इस परिस्थिति में समकालीन सरोकार की याद आना कोई अर्थ ज़रूर रखता है। आइए इस अर्थ के खुलने की प्रतीक्षा करते हैं और तब तक यह कविता पढ़ते हैं ....
जो इतिहास और वर्तमान को
भविष्य में बदल देता है
अछोर और अगम्य बना रहता है
लम्बे अन्तराल के बाद । सुन्दर सृजन।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और उपयोगी सृजन।
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