प्रिय भाई नीरज से माफी चाहूँगा कि उन्हें समेट नहीं पाया. कुव्वत नहीं जुटा पाया. कुव्वत है भी नहीं मुझमें उन जैसे सरल और विराट कवि को समेटने की. समय ने इस तरह बाँध रखा था कि छुड़ा नहीं सका खुद को. पर अब धीरे-धीरे वक्त मेरी पकड़ में आता जा रहा है, उसकी मेरे ऊपर पकड़ ढीली पड़ रही है. भाई अविनाश, राजेश उत्साही और अन्य मित्रों का आग्रह मुझे हमेशा जगाता रहा है. साखी को फिर से आप तक पहुँचाने को तैयार हो रहा हूँ. बहुत जल्द मेरे अग्रज और हिन्दी गजल में एक बड़ा नाम चन्द्रभान भारद्वाज की गजलों के साथ उपस्थित होऊंगा. आप सब का पहले जैसा प्यार मिलेगा ऐसी उम्मीद है.
बाबा जोगी एक अकेला, जाके तीरथ बरत न मेला। झोली पत्र बिभूति न बटवा, अनहद बैन बजावे। मांगि न खाइ न भूखा सोवे, घर अंगना फिरि आवे। पांच जना की जमाति चलावे, तास गुरू मैं चेला। कहे कबीर उनि देसि सिधाये बहुरि न इहि जग मेला।
सदस्यता लें
संदेश (Atom)
हां, आज ही, जरूर आयें
विजय नरेश की स्मृति में आज कहानी पाठ कैफी आजमी सभागार में शाम 5.30 बजे जुटेंगे शहर के बुद्धिजीवी, लेखक और कलाकार विजय नरेश की स्मृति में ...
-
मनोज भावुक को साखी पर प्रस्तुत करते हुए मुझे इसलिये प्रसन्नता हो रही है कि वे उम्र में छोटे होते हुए भी अपनी रचनाधर्मिता में अनुभवसम्पन्न...
-
ओम प्रकाश यती ओम प्रकाश यती न केवल शब्दों के जादूगर हैं बल्कि शब्दों के भीतर अपने समय को जिस तरलता से पकड़ते हैं वह निश्चय ही उनके जैस...
-
कबीर ने कहा, आओ तुम्हें सच की भट्ठी में पिघला दूं, खरा बना दूं मैंने उनके शबद की आंच पर रख दिया अपने आप को मेरी स्मृति खदबदान...