श्रद्धा जैन की गज़लों पर जम कर बात हुई। नयी कविता के जाने-माने नाम अरुन देव को छोड़कर बाकी सबने श्रद्धा जी की गज़लों में नयी आवाज और नया आकाश देखा। अरुन को कुछ शेर पसंद आये, कुछ नहीं पर क्यों पसंद नहीं आये, यह उन्होंने नहीं बताया। हाथ में पत्थर लिये... और ये लम्स तेरा... ज्यादातर लोगों के दिल में उतर गये. गज़लों की दुनिया को नये तेवर देने वाले सर्वत जमाल, बिहारी ब्लागर उर्फ सलिलजी और डा त्रिमोहन तरल ने विस्तार से श्रद्धा की गजलों की छानबीन की। सर्वत का ख्याल है कि श्रद्धा की सबसे बड़ी खूबी अगर तलाश करने की कोशिश की जाए तो यह बहुत मुश्किल काम होगा. आसान जबान को खूबी बताया जाए, विषय (कंटेंट) को खूबी गिना जाए, कहने के अंदाज़ की तारीफ की जाए, फैसला करना मुश्किल है. एक बात जरूर है, श्रद्धा की कोई भी गजल, पढ़ने वाले को एक फौलादी गिरफ्त में जकड़ लेती है. अगर आप चाहें भी तो श्रद्धा का एक मतला या एक शेर पढ़कर गजल से हट नहीं सकते. गजल बिना खत्म हुए आप को हटने नहीं देगी. इन सबके बावजूद श्रद्धा को अभी और मिट्टी खोदनी होगी, बहुत सी खाइयां पाटनी होगीं, बहुत से रास्तों को अपने हक में हमवार करना होगा. डॉ. सुभाष राय का आभार प्रकट करना पड़ेगा जिन्होंने यत्र-तत्र-सर्वत्र छिटके हुए रचनाकारों को 'साखी' के माध्यम से एक मजबूत प्लेटफ़ॉर्म दिया है.
सलिल का अंदाजे-बयां इस बार बदला हुआ नजर आया. वे अपनी जुबान भूल गये और इसके लिये श्रद्धा को जिम्मेदार ठहराया, उनके आधे नम्बर भी काट लिये. बोले, हिज्र के रंग से सराबोर ग़ज़ल, क़ाफिया “छोड़ गया” इसी जज़्बे की तर्जुमानी करता है. मतला बाँध लेता है
अज़ीब शख़्स था, आँखों में ख़्वाब छोड़ गया
वो मेरी मेज़ पे, अपनी किताब छोड़ गया
ग़ज़ल के सारे शेर एक रूमानियत में डूबे हैं और यहाँ हिज्र का रंग, दर्द से ज़्यादा मोहब्बत का असर पैदा करता है. यहाँ विसाले यार की उम्मीद हर शेर के पसेमंज़र में दिखाई देती है. हर शेर एक से बढकर एक. मतला सारे रूमानी सिम्बल लिए महबूब के अफसानों का एलान कर रहा है. पर इस रोमांटिसिज़्म में थोड़ा फलसफा भी शामिल है. मसलन, रूह और जिस्म की गुफ्तगू, आँसुओं के सींचे दरख़्त पे खारे फलों की बात, लेकिन दो शेर अलग से खींचकर बाँध लेते हैं...
हमको भी अपनी मुहब्बत पर हुआ तब ही यकीं
हाथ में पत्थर लिए जब लोग सारे आ गए
और
उम्र भर फल-फूल ले, जो छाँव में पलते रहे
पेड़ बूढ़ा हो गया, वो लेके आरे आ गए
जहाँ एक ओर पत्थर हाथ में लिए ज़माने का ज़िक्र है और दूसरी ओर बूढे पेड़ को काटने के लिए आरे लिए इंसानों की ज़हनियत. मक़्ते पर तो बस इतना ही कहना काफी होगा कि ये शरारे नहीं शोले हैं.
इस ग़ज़ल की ख़ूबसूरती अलग से निखर के सामने आती है. यहाँ हर शेर अपनी एक अलग पहचान रखता है. और यहाँ प्रतियोगिता है कि कौन बेहतर है. अक्सर ग़ज़ल के मुख़्तलिफ़ शेर मुख्तलिफ़ बयान होते हैं. श्रद्धा जी कि इस ग़ज़ल में सारे शेर अलग अलग तरह से एक ही बात की ओर इशारा कर रहे हैं और वो बात है एक आशिक़ (या माशूक) का अपने बिछड़े माशूक (या आशिक़) के लिए त्याग का जज़्बा, या फिर टूटे हुए दिल से दुआ देना. चाहे वो आँखों में आँसू लिए हौसला देना हो, बारिशों में पत्ते बनकर उड़ जाने वाले परिंदों को छाँव मुहैया कराना हो, अच्छा होगा कह कर ख़ुद को दगा देना हो, सारी ख़ुशियाँ उसके पते पर रुख़सत करना हो, ख़ुद से साथीके मिलने की दुआ हो या तमाम बंदिशों के बावजूद ख़ामोश सदा देना हो. एक शेर जो बाकियों से मुख्तलिफ बयानी करता है अलग से ख़ूबसूरत लगता हैः
मेरे चुप होते ही, किस्सा छेड़ देते थे नया
इस तरह वो गुफ़्तगू को, सिलसिला देते रहे.
उन्होंने कहा, सारी गज़लें बाबहर हैं और गाई जाने वाली हैं.हमारी तरफ से 10 में से 9.5 अंक.
डा तरल ने श्रद्धा की ग़ज़लों में रवायती और जदीद शायरी के फूलों से सजाया गया एक बेहतरीन गुलदस्ता देखा। कहा, ग़ज़लकार के रूप में मैं ख़ुद पारम्परिक एवं आधुनिक तत्वों के स्वस्थ संतुलन का सबल पक्षधर हूँ। चिंतन के वृक्ष की नवीनतम कोपलें सबसे ऊपर और गगन उन्मुखी तो हो सकतीं हैं मगर उन्हें ऐसा बने रहने के लिए खाद पानी तो जड़ों के माध्यम से ही प्राप्त करने होंगे। माँ कितनी ही बूढ़ी क्यों न हो जाए अपनी युवा संतति को कुछ न कुछ सिखाने की स्थिति में हमेशा रहती है। श्रद्धा ने जिस खूबसूरती से रूमानी हकीक़त या हक़ीकी रूमानियत को अपने अशआर में पेश किया है वो वाकई काबिले तारीफ़ है। पहली ग़ज़ल के मक़ते में हिज्र देखने वाले हिज्र देखने के लिए आजाद हैं, मुझे तो इसमें उस मुहब्बत के आगाज़ का बड़ी तहज़ीब से किया गया एक खूबसूरत इशारा दिखाई दे रहा है जिसका अंजाम वस्ल भी हो सकता है :
अजीब शख्स था आँखों में ख्वाब छोड़ गया
वो मेरी मेज पे अपनी किताब छोड़ गया
ध्यान रहे अभी ख्वाब टूटा नहीं है अभी तो ख्वाब की शुरुआत है। दूसरी ग़ज़ल के शेर दौरे हाज़िर के हालात से रूबरू कराते हुए ग़ज़ल को सीधे जदीद शायरी से जोड़ते हैं:
हमको अपनी मुहब्बत पर हुआ तब ही यकीं
हाथ में पत्थर लिए जब लोग सारे आ गए
आनर किलिंग वाली आज की ज्वलंत सामाजिक समस्या पर सीधा प्रहार तो दिखता ही है, पुरानी पीढ़ी के प्रति हमारी नयी पीढ़ी की अहसान फरामोशी पर उँगली भी उठती नजर आती है। बहर-ओ-वज्न पर पर्याप्त पकड़ बना चुकीं श्रद्धा के पास ग़ज़ल कहने का सभी ज़रूरी साज़-ओ-सामान मौजूद है।
शायर ओम प्रकाश नदीम ने कहा, श्रद्धा जी की गजलें पढ़कर सुखद अनुभूति हुई। उनके शेर कहने का ढंग बहुत अच्छा है। ये लम्स तेरा... बिल्कुल नये अन्दाज में कहा गया शेर है। उनकी शायरी का कैनवस काफी बड़ा है। उनमें बहुत सम्भावनाएं निहित हैं। उम्मीद है आगे भी इसी तरह की उम्दा गजलें पढने को मिलेंगी। गजलकार नीरज गोस्वामी ने कहा, श्रद्धा जी की दिलकश गजलों को पढ़ना एक अनुभव से गुजरने जैसा होता है. सलीके से अपनी बात कहने का उनका अपना एक अलग अंदाज़ है...उनकी ग़ज़लों में से किसी एक शेर को कोट नहीं किया जा सकता, क्यूँ कि सारी ग़ज़लें और उनमें आये अशआर बेशकीमती, लाजवाब और अनूठे होते हैं...शुक्रिया उनकी बेहतरीन शायरी हम तक पहुँचाने के लिए.
गजलकार संजीव गौतम ने कहा, पिछले वर्ष ब्लाग जगत में ग़ज़लों में कई नामों से परिचय हुआ। प्रकाष अर्ष, वीनस केसरी, रविकांत पाण्डेय, अंकित सफर, श्रद्धा जैन। इन सबमें श्रद्धा जी ने बहुत कम समय में अपना एक मेयार कायम किया है। वे अन्यों से मीलों आगे हैं। उनके व्यक्तित्व की एक और खासियत है जिसके कारण वे आज इस मुकाम पर हैं, वह है हर प्रकार की टिप्पणी को सहजता से लेने और ज्ञान जहां से भी मिले उसे समेटने का गुण। उनकी ग़ज़लों की खुश्बू दूर तक और देर तक कायम रहेगी, ऐसा मेरा विश्वास है। श्रद्धा जी की ग़जलों को पढ़कर उन्हें अशआर याद आया-
गिजाल, चांदनी, सन्दल, गुलाब रखता है।
वो एक शख्स भी क्या-क्या खिताब रखता है।
मशहूर रचनाकार अविनाश वाचस्पति का निराला अंदाज फिर दिखायी पड़ा, वैसे तो सभी ताजातरीन हैं पर यह तो बेहतरीन है..
हमको भी अपनी मुहब्बत पर हुआ तब ही यकीं
हाथ में पत्थर लिए जब लोग सारे आ गए
वे बोले, पत्थर भी खुश हो रहे होंगे कि सिर फोड़ने से इतर अब यकीं दिलाने के लिए हमारा इस्तेमाल होने लगा है। ऐसे पत्थरों से सिर नहीं फूटा करते बल्कि मुहब्बत करने वाले पत्थरों के प्रति श्रद्धावनत हुआ करेंगे। बिना हेलमेट धारण किए पहुंच जाया करेंगे, और इससे अच्छा सच्चा यकीन का कोई और तरीका क्या होगा ?
मशहूर रचनाकार रवीन्द्र प्रभात ने कहा, अगर सच पूछिये तो श्रद्धा जी की गज़लें मुझे बहुत पसंद है , जब भी कुछ बढ़िया पढ़ने की इच्छा होती है कविता कोश में श्रद्धा जी की ग़ज़लों को बांच लेता हूँ. कवि डा महाराज सिंह परिहार का मानना है कि श्रद्धा जी की गजलें काबिले तारीफ है। उन्होंने अपनी निजी अनुभूतियों को अनूठे अंदाज में प्रस्तुत किया है। उनकी गजल में संयोग और वियोग की जुगलबंदी भी दिखाई देती है। लेखक और कवि गिरीश पंकज ने कहा, श्रद्धा की अच्छी रचनाओं के कारण उनके प्रति श्रद्धा टपकती है. मुकेश पोपली के अनुसार श्रद्धा की एक-एक ग़ज़ल श्रद्धा पूर्ण है, एक आग है जो इन शोलों से उठती है, एक राग है जो दिल का दर्द सुनाती है। वन्दना जी के मुताबिक श्रद्धा जी ने ज़िन्दगी के हर पहलू को छुआ है अपनी गज़लों मे। अनामिका जी ने कहा कि श्रद्धा जी की लेखनी कमाल की है. सारी गजलें बहुत उम्दा हैं. विनोद कुमार पांडेय को पछतावा है, श्रद्धा को इतना देर से पढ़ना शुरू करने का. एक से बढ़कर एक शेर. शायर अशोक का कहना है कि श्रद्धा जी की गज़लें हर गज़ल प्रेमी के दिल को बाँध लेती हैं, ऐसी गज़लें, जिसके किसी भी शेर को आप
न पढ़ने की चूक नहीं कर सकते. कनाडा से समीर लाल जी, बन्धुवर जाकिर अली रजनीश, मदन मोहन शर्मा अरविंद, शहरोज, वेद व्यथित, राजेश उत्साही, राणा प्रताप सिंह, अदा जी और् सुलभ जी की मौजूदगी ने मजलिस को और रौशन किया.
श्रद्धा जैन ने वैसे तो सबके प्रति आभार जताया पर सलिल जी को खास याद फरमाया, क्या कहूँ जिस तरह आपने मेरी गजलों का विश्लेषण किया है उसकी रूह तक पढ़ी है, एक एक शब्द पर आपकी टिप्पणी. बस इतना ही कहूँगी कि मेरा ग़ज़ल लिखना सार्थक हो गया .चर्चाकार संगीता स्वरूप को वैसे तो श्रद्धा जी की गजलें बेहद पसंद हैं, पर एक शेर बहुत लाजवाब लगा,
धूप खिलते ही परिंदे, जाएँगे उड़, था पता
बारिशों में पेड़ फिर भी, आसरा देते रहे .
उन्होंने साखी की इस प्रस्तुति को चर्चा मंच पर 17 अगस्त को पुनर्प्रस्तुत करके हमारा दिल जीत लिया.
अगले शनिवार को मदन मोहन शर्मा अरविंद की गजलें
-------------------------------------------------------------
बाबा जोगी एक अकेला, जाके तीरथ बरत न मेला। झोली पत्र बिभूति न बटवा, अनहद बैन बजावे। मांगि न खाइ न भूखा सोवे, घर अंगना फिरि आवे। पांच जना की जमाति चलावे, तास गुरू मैं चेला। कहे कबीर उनि देसि सिधाये बहुरि न इहि जग मेला।
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
हां, आज ही, जरूर आयें
विजय नरेश की स्मृति में आज कहानी पाठ कैफी आजमी सभागार में शाम 5.30 बजे जुटेंगे शहर के बुद्धिजीवी, लेखक और कलाकार विजय नरेश की स्मृति में ...
-
मनोज भावुक को साखी पर प्रस्तुत करते हुए मुझे इसलिये प्रसन्नता हो रही है कि वे उम्र में छोटे होते हुए भी अपनी रचनाधर्मिता में अनुभवसम्पन्न...
-
कबीर ने कहा, आओ तुम्हें सच की भट्ठी में पिघला दूं, खरा बना दूं मैंने उनके शबद की आंच पर रख दिया अपने आप को मेरी स्मृति खदबदान...
-
ओम प्रकाश यती ओम प्रकाश यती न केवल शब्दों के जादूगर हैं बल्कि शब्दों के भीतर अपने समय को जिस तरलता से पकड़ते हैं वह निश्चय ही उनके जैस...
श्रद्धा जी की गज़लों पर की गयी समीक्षा भी दिल चुरा ले गयी।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी समीक्षा ....
जवाब देंहटाएंइतनी गहन और साफ़ आईने सी समीक्षा पहली बार किसी ब्लॉग में पढ़ी. साधुवाद आदरणीय सुभाष राय जी का. हमे भी बहुत सीखने को मिला..प्रणाम !
जवाब देंहटाएंस्रद्धा जी ने पर्सनली मुझे धन्यवाद कह दिया था... बाकि लोगों के भी बिचार गौरतलब है... सुभास राय जी अबस्य धन्यवाद के पात्र हैं..
जवाब देंहटाएंश्रद्धा जी की ग़ज़लों का मैं फैन हूँ. समीक्षा पढ़ कर अच्छा लगा. जब भी समय लगता हैं श्रद्धा जी की ग़ज़लें पढ़ने बैठ जाता हूँ.
जवाब देंहटाएंShradha ji ki gazlon ke diwaane to ham bhi hain ... ye charcha padh kar aur bhi achhaa laga ...
जवाब देंहटाएंसुभाष राय जी ,साखी के माद्ध्यम से जो विश्लेषण श्रृद्धा जैन की ग़ज़लों का प्रस्तुत हुआ है , ब्लॉग पर साहित्य की गरिमा को स्थापित करने का महत्व पूर्ण प्रयास माना जायेगा ./आप को धन्यवाद.
जवाब देंहटाएं