इस बहस में अनेक मान्य रचनाकारों ने अपनी मौजूदगी दर्ज की। रविन्द्र प्रभात का मानना है कि ओम प्रकाश नदीम की गज़लें उम्दा होती हैं, कथ्य और बिंब में गज़ब का तारतम्य होता है और बज्नो-बहर की बात मत पूछिए वो इनकी ग़ज़लों की सबसे बड़ी विशेषता होती है, खासकर यह शेर मुझे बहुत पसंद आया--
चुप रहा तो घुट के रह जाएगा जीने का मजा,
रोया तो बह जाएगा सब अश्क पीने का मजा।
समीर लाल जी का कहना है, बहुत ही जबरदस्त रहीं सभी गज़लें और एक शेर जो मेरी डायरी में उतर गया-- बहुत कम में बहुत कुछ है हमारे गाँव में अब भी,
भले बिजली न सड़कें हैं न ही अखबार मिलता है।
संजीव गौतम ने कहा, नदीम सर की ग़ज़लें सर चढ़कर बोलती हैं उनके व्यक्तित्व की तरह। मुझे नहीं लगता कि इन पर मुझ जैसे नौसिखये को कुछ कहना चाहिए। मैं तो इनसे प्रेरणा ग्रहण करता हूं। मदन मोहन शर्मा अरविन्द ने कहा, कभी चुप रहना कुछ बोलने से अधिक कारगर रहता है. नदीम जी की ग़ज़लें मुझे कुछ बोलने की मोहलत भी नहीं दे रहीं। सुनील गज्जाणी ने उम्दा ग़ज़लों के लिए साखी का साधुवाद किया और गजलों के नयेपन की ओर इंगित किया। वेद व्यथित की नजर में इन गजलों में बहुत सुन्दर रिदम है, रवानगी है और सहजता है। अविनाश वाचस्पति अपनी काव्यमय प्रतिक्रिया के साथ हमारा उत्साह बढ़ाने के लिये हमारे बीच उपस्थित रहे। बिहारी बाबू यानि सलिल जी अपने अन्दाज में जब गजलों की बात करते हैं तो सबहन के मजा आ जाला। उन्होंने कहा, ई साखी त हमको सीप का जईसा बुझाता है जिसमें से एक से एक मोती निकल कर सामने आता है..ओम प्रकाश नदीम जी को हमारा प्रणाम।भरे बाजार से अक्सर मैं खाली हाथ आता हूँ
कभी ख्वाहिश नहीं होती कभी पैसे नहीं होते
एक आम आदमी का बेदना इस सेर में देखाई देता है। आनंदित हो गए हम!
राजेश उत्साही ने लिखा, नदीम जी की शायरी उद्वेलित करती है। उनकी शायरी पर कहने को कुछ नहीं है। हां गुनने को बहुत कुछ है। अपनी बात को कहने का उनका अंदाज निराला है। पर उनकी शायरी के बहाने मैं यहां कुछ और कहना चाहता हूं। उनकी शायरी पढ़कर अगर दिल खुश हो गया,मन खुश हो गया या आनंद आ गया जैसी ही प्रतिक्रिया आप दे पा रहे हैं तो समझिए आप उनकी शायरी की आत्मा तक नहीं पहुंचे। बस शब्दों के चयन और बेहतर संयोजन को देखकर ही वापस लौट गए हैं। नदीम जी की शायरी जिन्दगी की जद्दोजहद से रूबरू कराती है, उसकी छटपटाहट को महसूस करने की जरूरत है। मुझे लगता है जितनी मेहनत से रचनाकार लिखता है, उतनी ही मेहनत से उस पर टिप्पणी लिखने वालों को करना चाहिए। अन्यथा न लें, मन खुश हुआ,दिल खुश हुआ जैसे शब्द पढ़कर लगता है जैसे हम प्रशंसा कर रहे हैं या लानत भेज रहे हैं। ध्यान रखियेगा राजेश जी ने कहा है, अन्यथा न लें। डा सी पी राय ने कहा, नदीम जी चारों गजलें बहुत अच्छी है। एक एक शेर पूरी गजल है। शारदा अरोरा को यह शेर बहुत पसन्द आया--
ये रिश्ता हर सफ़र हर मोड़ पर हर बार मिलता है,
तुम्हारी हर कहानी में मेरा किरदार मिलता है।
ओम प्रकाश नदीम साहब ने अपने प्रति दिखायी गयी इस आत्मीयता के लिये सभी गजलकारों, रचनाकारों और संवेदनशील साहित्यप्रेमियों के प्रति विनम्रतापूर्वक आभार जताया. उन्होंने सबके लिये एक शेर अर्ज किया---
कभी मेयार से नीचे न गिरना आइना हो तुम
अगर गिरना ही पड़ जाये तो चकनाचूर हो जाना.
शनिवार को साखी पर श्रद्धा जैन की गजलें
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कभी मेयार से नीचे न गिरना आइना हो तुम
जवाब देंहटाएंअगर गिरना ही पड़ जाये तो चकनाचूर हो जाना.
बड़ी मार्के की बात है
साखी को एक बार फिर से आभार| नदीम साहब की गज़ले कमाल की थी| "श्रद्धा जैन" ग़ज़ल में जाना माना नाम है| उनकी गज़लों की भी प्रतीक्षा रहेगी|
कभी मेयार से नीचे न गिरना आइना हो तुम
जवाब देंहटाएंअगर गिरना ही पड़ जाये तो चकनाचूर हो जाना.
वाह ...बहुत सुन्दर ....आभार
भरे बाजार से अक्सर मैं खाली हाथ आता हूँ
जवाब देंहटाएंकभी ख्वाहिश नहीं होती कभी पैसे नहीं होते
न होते धूप के टुकड़े न मिलता छाँव को हिस्सा
अगर पेड़ों पे इतने एकजुट पत्ते नहीं होते
अभी पढी हैं और सच कहा उत्साही जी ने हर शेर ज़िन्दगी की सच्चाइयों से रु-ब-रु करवाता है। शायद उनके कहने के बाद कुछ कहने को नही बचता।
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जवाब देंहटाएंडॉ. सुभास राय जी, हमरा त सुरुए से ई मानना है कि बास्त्व में गजल ओही अच्छा होता है जिसपर टिप्पनी नहीं किया जा सके...काहे कि दू लाइन में जो जिंदगी का अनुभब का निचोड़ सायर प्रस्तुत करता है ऊ दू लाइन के टिप्पनी में असम्भब है... नदीम साहब का गजल उनके नाम से हम अपने दोस्त लोग को सुनाकर जेतना बाह बाही बटोरे हैं, ऊ सब बाह बाही 3 इंच बाई 9 इंच का टिप्पनी बॉक्स में लिखना मोस्किल है... हमरे तरफ से नदीम साहब को एक बार फिर सलाम अऊर आपके ई अनूठा प्रयास के लिए धन्यवाद!!
जवाब देंहटाएंअसलियत में नदीम साहब सच्चाईयों की ऐसी नदी हैं जो कांच की है और गिरने पर चकनाचूर होकर रहेगी पर वो कांच का चूरा, बूरा नहीं है मीठा, वो कड़वा, तीखा और जलनभरा है, तपनभरा है। जब तक जीवन में पोर पोर में इंसानियत नहीं समा जाती, तब तक ...
जवाब देंहटाएंकभी मेयार से नीचे न गिरना आइना हो तुम
जवाब देंहटाएंअगर गिरना ही पड़ जाये तो चकनाचूर हो जाना.
-क्या बात कही है...
कभी मेयार से नीचे न गिरना आइना हो तुम
जवाब देंहटाएंअगर गिरना ही पड़ जाये तो चकनाचूर हो जाना.
वाह