बाबा जोगी एक अकेला, जाके तीरथ बरत न मेला। झोली पत्र बिभूति न बटवा, अनहद बैन बजावे। मांगि न खाइ न भूखा सोवे, घर अंगना फिरि आवे। पांच जना की जमाति चलावे, तास गुरू मैं चेला। कहे कबीर उनि देसि सिधाये बहुरि न इहि जग मेला।
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
हां, आज ही, जरूर आयें
विजय नरेश की स्मृति में आज कहानी पाठ कैफी आजमी सभागार में शाम 5.30 बजे जुटेंगे शहर के बुद्धिजीवी, लेखक और कलाकार विजय नरेश की स्मृति में ...
-
मनोज भावुक को साखी पर प्रस्तुत करते हुए मुझे इसलिये प्रसन्नता हो रही है कि वे उम्र में छोटे होते हुए भी अपनी रचनाधर्मिता में अनुभवसम्पन्न...
-
कबीर ने कहा, आओ तुम्हें सच की भट्ठी में पिघला दूं, खरा बना दूं मैंने उनके शबद की आंच पर रख दिया अपने आप को मेरी स्मृति खदबदान...
-
ओम प्रकाश यती ओम प्रकाश यती न केवल शब्दों के जादूगर हैं बल्कि शब्दों के भीतर अपने समय को जिस तरलता से पकड़ते हैं वह निश्चय ही उनके जैस...
बधाई!!
जवाब देंहटाएंBahut badhiya!
जवाब देंहटाएंबधाई
जवाब देंहटाएंसमकालीन सरोकार के लिए बहुत बहुत शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएं