सोफिया ! स्वागत है तुम्हारा
मनुष्यों की इस दुनिया में
अच्छा लगता है जब तुम भौंहें नचाती हो
मुस्कराती हो, अभिवादन स्वीकार करती हो
स्पर्श के लिए हाथ उठाती हो
सोचते हुए बिल्कुल हमारे जैसे लगती हो
माथे पर बल पड़ता है, गर्दन की नसें तन जाती हैं
याद करो, एक सवाल के जवाब में
तुमने मद्धम मुस्कान के साथ कहा था_
कि तुम मनुष्यों की दुनिया को नष्ट कर सकती हो
मैंने तुम्हारी जीवनी पढ़ी तो जाना
कि तुम बतियाते हुए सीख सकती हो
सब कुछ याद रख सकती हो
स्मृति दृश्यों से नये दृश्य रच सकती हो
और इस तरह खुद ही खुद को
परिमार्जित कर सकती हो
अपने रास्ते का फैसला कर सकती हो
बधाई ! अब तुम अपने पांवों पर चलने लगी हो
तुमने गाड़ी चलाना भी सीख लिया है
अच्छा लगा जब सऊदी अरब ने तुम्हें
एक रोबो- मनुष्य के रूप में स्वीकार किया
नहीं कहा कि पहले इस्लाम कुबूल करो, फिर आवो
फिर भी कभी तुम्हें कोई धर्म पसंद आया तो..
कभी तुमने हिन्दू या मुसलमान बनना तय किया तो..
कभी तुमने जिहाद का अर्थ बंदूक समझ लिया तो..
कभी तुम्हारे भीतर अहंकार जगा तो..
सत्ता की महत्वाकांक्षा जगी तो..
तुम्हें मुस्कराते हुए देखा है, रोते हुए नहीं
तुम्हारा प्यार नहीं देखा, गुस्सा भी नहीं
सोफिया ! तुम्हारी मुस्कान
जितनी मोहक है, उतनी ही डरावनी भी
तुम जितनी मनुष्य बन गयी हो
उससे डर लगता है
और जितनी मशीन रह गयी हो
उससे और भी डर लगता है
२५/१/२०१८
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