विनय कुमार मिश्र
यह कार्यक्रम उस लड़की की स्मृति में है, जिसका नाम विजय ठाकुर था। जिसे कुछ लोग विजय नरेश के नाम से जानते हैं और बहुत कम जानते हैं।
माँ बेनीबाई ठुमरी की प्रसिद्ध गायिका थीं, लेकिन जहां पुरुष गायकों को पंडित, महाराज या गुरु कहकर सम्मानित किया जाता था वहीं पेशेवर गायिकाओं को तवायफ़ कहा जाता था।
विजय का एमबीबीएस में भोपाल में दाखिला हुआ, लेकिन लड़को ने अश्लील फब्तियाँ और फिकरे कसकर पढ़ाई छोड़ने पर मजबूर कर दिया। वहां से जबलपुर मेडिकल कॉलेज में स्थानांतरण कराया, लेकिन शोहरत ने पीछा नहीं छोड़ा; पढ़ाई छोड़नी पड़ी। ...और बीमार पड़ गईं। इसके बाद कभी कॉलेज जाना नहीं हुआ।
घर भी बदनाम मोहल्ले में था, इसलिए सहेलियों का आना असंभव था। जिसे विश्वविद्यालयों के अखिल भारतीय यूथ फेस्टिवल में सर्वश्रेष्ठ शास्त्रीय गायिका का सम्मान मिला था। उसका गाना भी बंद हो गया। हालाँकि लखनऊ दूरदर्शन और आकाशवाणी पर शायद उनके गाये गीत मिल सकते हैं। रेडियो अदीस अबाबा से अब भी कभी-कभी कोई गीत प्रसारित हो जाता है।
विवाह के बाद पुणे फिल्म इंस्टीट्यूट से फिल्म निर्देशन में स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त करने वाली पहली महिला थीं। लखनऊ में राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त फिल्मों के एकमात्र महोत्सव की निर्देशक रही। यहां उनकी फिल्म जौनसार बाबर को सर्वश्रेष्ठ डॉक्यूमेंट्री का सम्मान प्राप्त हुआ।
सत्यजीत राय को छोड़कर कोई ऐसा बड़ा फिल्म निर्देशक नहीं था, जो इस समारोह में शामिल न हुआ हो। श्याम बेनेगल, गोविंद निहलानी, ऋषिकेश मुखर्जी, सईद अख्तर मिर्जा, जानू बरूआ, एम.एस.सेथ्यू, बासु भट्टाचार्य, बासु चटर्जी आदि सभी थे। प्रकाश झा की फिल्म दमुल का पहला शो इसी समारोह में हुआ था। ओडियन सिनेमा, मेफेयर सिनेमा, रविंद्रालय आदि कई सिनेमाघरों में एक साथ फिल्में दिखाई गई थीं। सभी शो हाउसफुल थे।
विजय ने किसी भी एक्टर या एक्ट्रेस को बुलाने से मना कर दिया था। मुख्यमंत्री एनडी तिवारी ने जब चाहा कि दीप प्रज्वलन के लिए किसी बड़ी अभिनेत्री को बुलाया जाए तो विजय ने यह कहकर मना कर दिया था कि यह माध्यम निर्देशकों का है अभिनेताओं के ग्लैमर से बहुत नुकसान होगा। ... और अगर यह बहुत जरूरी हो तो मुझे इस काम से हटा दीजिए और दूसरी बात यह कि कोई सचिव, मंत्री, एम.एल.ए. या मुख्यमंत्री के परिवार के लोग बिना टिकट लिए प्रवेश नहीं पाएंगे।
सिर्फ़ संगीत निर्देशक नौशाद और तलत महमूद ही दो ऐसे व्यक्ति थे, जो निर्देशक नहीं थे लेकिन इसलिए शामिल थे कि लखनऊ के रहने वाले थे।
स्पेस एप्लीकेशन सेंटर (आई.एस.आर.ओ.) अहमदाबाद से सेटेलाइट के माध्यम से भारत में प्रसारित होने वाला पहला टीवी सीरियल विजय का बनाया हुआ ही था। यह गुजराती में था। और तब दूरदर्शन की शुरुआत शायद नहीं हुई थी। सागर सम्राट और हेलीकॉप्टर से उड़ान भरकर बीच समुद्र में होने वाले पेट्रोल के कुओं की ड्रिलिंग, जैसी साहसपूर्ण डॉक्यूमेंट्री भी विजय ने बनाई। ऐसी दसियों उपलब्धियाँ विजय के नाम दर्ज़ हैं, जिसके लिए उन्हें अखिल भारतीय स्तर पर पहले पहल होने का श्रेय है।
अंततः विदेश सेवा में प्रथम सचिव के स्तर पर भारतीय दूतावास सूरीनाम में इंडियन कल्चरल सेंटर की डायरेक्टर नियुक्त हुईं।
ये सारी उपलब्धियां कोई खास नहीं हैं। खास ये है कि जिस लड़की के लिए सामाजिक, शैक्षणिक और निजी स्तर पर आगे बढ़ने के सारे दरवाजे बंद हो गए थे, उसे यदि दीवार में कोई दरार भी मिल जाये तो किस तरह वो हवा की तरह आसमान का रुख़ कर सकती है।
दिनांक 22 जून को उनकी स्मृति में कैफ़ी आज़मी सभागार में शाम 05:30 बजे से कहानी पाठ और कहानियों पर चर्चा और प्रतिउत्तर आयोजित है।
दिल्ली से ममता कालिया,
भोपाल से हरि भटनागर और मुकेश वर्मा कहानी पाठ करेंगे...
चर्चा में श्रोताओं के साथ शिवमूर्ति अध्यक्ष के तौर पर और अखिलेश और नलिन रंजन सिंह मुख्य वक्ता के तौर पर शामिल होंगे...
आप सभी सादर आमंत्रित हैं...
चाय साढ़े पाँच बजे हैं...