राजेश उत्साही की कविताओं पर जिस तरह की बातचीत हुई, वह साखी के उद्देश्यों को सार्थकता की दिशा में ले जाने के पाठकीय संकल्प को उजागर करने के लिये काफी है। जिन रचनाधर्मियों, चिन्तकों और सजग पाठकों ने बहस में हिस्सा लिया, उनका आभार। प्रवासी गजलकार प्राण शर्मा ने कहा कि राजेश जी की कविताएं जादू करती हुई न केवल सर पर चढ़कर बोलती हैं बल्कि दिल में उतर जाती हैं। अधिकांश लोगों ने इन कविताओं में समय की गूंज देखी। नीरज गोस्वामी जी, संजीव गौतम जी और बिहारी बाबू यानि सलिल जी की प्रतिक्रियाओं को एक साथ देखूं तो इन रचनाओं के बारे में एक प्रतिनिधि राय उभर कर सामने आती है। बकौल नीरज राजेश जी की रचनायें कहन में जितनी सरल हैं, उतनी ही मारक हैं...शब्द शब्द चोट करती हुई। आज की त्रासदियों और गिरते मूल्यों को बहुत बेबाकी से प्रदर्शित करती हैं। संजीव के मुताबिक ये कविताएं इस बात का स्पष्ट प्रमाण हैं कि राजेश जी तक पहुंचने के रास्ते बहुत सीधे-साधे हैं। कहीं कोई घुमाव या चक्करदार रास्ता नहीं। पहली पंक्ति पढ़िये और कवि से सीधे जुड़ जाइए। बड़ी बात भी सीधे-सादे शब्दों में कही जा सकती है, इस धारणा को इन पंक्तियों से बल मिलता है-पानी/ उतर गया है/ जमीन में नीचे/ बहुत नीचे/इतना जितना कि/आदमी अपनी आदमीयत से। क्या कविता की समीक्षा का एक पक्ष यह नहीं होना चाहिए कि उन कविताओं ने सबसे पहले अपने कवि का कितना निर्माण किया है- आश्चर्य/ कि मेरे शब्दकोश में/ दोस्त का अर्थ/ अब तक वही है। इनसे स्पष्ट है कि कविताएं अपने उद्देश्य में सफल हैं। बिहारी ब्लागर यानि खड्ग़ सिंह ने कहा, पहली अच्छी है, दूसरी उससे अच्छी और अगली और अच्छी।... अंत तक आते आते लगा कि हम नशा का सागर में डूब गए हैं... चाहे ऊ मर गया पानी हो या शिनाख्त के लिए आवारा दौड़।
मशहूर शायर सर्वत जमाल ने कहा कि इन कविताओं की ख़ास विशेषता यह है कि कम शब्दों में बहुत कुछ कह जाती हैं। दिगम्बर नासवा क़े अनुसार राजेश जी की कविताएँ आज के समाज पर, सामाजिक मान्यताओं पर करारी चोट करती हैं । कल रात ...नामक रचना में आज के माहौल का जीता जागता चित्रण है। अनामिका जी को ये पंक्तियां बहुत पसंद आई ..पानी उतर गया है.. इतना जितना कि आदमी अपनी आदमीयत से। सच में ये कवितायें आज के यथार्थ से परिचय करवा गयी। कविता रावत ने कहा कि इंसान अपनी भलमानुसता के लिए ही जाने जाते है, फितरत बदलना मतलबी इंसानों को ही भाता है। समय के साथ अर्थ बदलते देर कहाँ लगती। उन्होंने इन कविताओं में संवेदनहीन होते और जीवन मूल्य खोते इंसान की आज की स्थिति की यथार्थ प्रस्तुति देखी और कहा कि उत्साही जी ने इन कविताओं के माध्यम से समाज में व्याप्त अमानवीयता और इंसान के दर्द को बखूबी प्रस्तुत किया है। जाने माने लेखक समीर लाल जी ने कहा कि अंतिम रचना अद्भुत लगी, इसने झकझोर कर रख दिया। मशहूर व्यंग्यकार अविनाश वाचस्पति को शिनाख्ती कविता बहुत पुख्ता लगी। उन्होंने कहा, शब्दकोश रचने के लिए जीना पड़ता है। शब्दों का पानी घूंट घूंट भरकर पीना पड़ता है। पर जहां चुल्लू भर पानी नहीं मिलता मरने के लिए, हवा लेकर ही जीना पड़ता है। हवा जो दूषित हो गई है। मानसिकता मनुष्य की सूअर हो गई है। और कहें क्या,कहे बिन रहें क्या, समझ लें खुद ही। जीवन की गति का अहसास कराती कविताएं। उत्साह से लबरेज करती चलती हैं। एक एक शब्द में नए अर्थ भर देती हैं। विनोद कुमार पांडेय ने कहा कि सरल शब्दों में मानवीय भावनाओं का यह विश्लेषण कमाल का है।
रश्मिप्रभा का कहना है कि हर रचना जीवन के रास्ते दिखाती हुई बहुत प्रभावशाली है। सतीश सक्सेना को रचनाएँ तो पसंद आयीं पर उनका सुझाव है कि एक बार में किसी कवि की एक ही रचना हो तो बेहतर रहेगा। वंदना ने भी सतीश का समर्थन किया। साथ में यह भी जोड़ा कि रचनाएं अच्छी हैं और जीवन के दर्शन से रूबरू कराती हैं। सुनील गज्जाणी का कहना था कि ये कविताएँ दिल को छू लेती हैं। पानी की बात करें तो आज आदमी अपनी पहचान खोता जा रहा है। राम त्यागी ने इन्हें उम्दा बताया। शोभना चौरे ने इन्हें मानवता का सही चित्रण करती सशक्त कवितायें कहा। उनका सोचना है कि आदमी के बदलते चरित्र का सही चित्रण किया गया है। राजनीति कण कण में समा गई है और विलोम अर्थ ही शेष रह गये हैं। जाकिर अली रजनीश, मुकेश कुमार सिन्हा, पारुल, शिखा वार्ष्णेय, संध्या गुप्ता, आभा, अविनाश चंद्रा, विवेक जैन और बेचैन आत्मा ने भी कविताओं की सराहना की। बेचैन आत्मा ने कहा कि सभी कविताएँ बेहतरीन हैं.पानी का दर्द, दोस्ती का अर्थ और ज़माने की सच्चाई बयान करती कविताओं के बीच संदेश देती क्षणिकाएँ मुग्ध करती हैं। शारदा अरोरा ने कहा कि ये कवितायेँ थोड़े में ही बहुत कुछ कह गईं हैं। जब तक आदमी मुखौटे लगाए रहता है, लोग उसकी कीमत चढ़ाये रहते हैं, यह कैसी विडम्बना है। वाणीगीत ने कहा, अपना अस्तित्व बनाये रखने के लिए जरुरी है उनका विलोम होना, उल्टी बात कहना, यही सत्य है।
आशीष जी ने सवाल किया कि 'इच्छाएं' की पहली कविता की पहली पंक्ति में 'चुक' के स्थान पर 'चूक' सही होगा, जिस पर राजेश उत्साही ने साफ किया कि दोनों के अर्थ अलग हैं। यहां शब्दों के चुकने की बात हो रही है,जिसका अर्थ है कि आपके पास कुछ नहीं बचा। चूकने का प्रयोग इस तरह होता है, आपका निशाना चूक गया या आप गाड़ी चूक गए। उत्साही जी ने सतीश जी,वंदना जी तथा सर्वत जी के इस सुझाव पर कि अगर एक बार में एक ही कविता प्रस्तुत की जाती तो बेहतर होता, स्पष्ट किया कि साखी कवि के बहाने कविता की समीक्षा का मंच है। किसी एक कविता के आधार पर आप कवि के बारे में बात नहीं कर सकते। उसकी रचनाधर्मिता के बारे में बात करने के लिए आपके पास उसकी रचना की विविधता होनी चाहिए। एक और बात। यहां प्रस्तुत चार छोटी कविताएं स्वतंत्र हैं पर अगर उनको इसी क्रम में एक साथ पढ़ा जाए तो वह एक और कविता का अर्थ देती हैं। राजेश ने अपनी कविताओं पर बातचीत करने के लिए साखी पर आये सभी पाठकों, रचनाकर्मियों के प्रति हार्दिक आभार जताया।
अगले शनिवार को अरुणा राय की कविताएँ
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बाबा जोगी एक अकेला, जाके तीरथ बरत न मेला। झोली पत्र बिभूति न बटवा, अनहद बैन बजावे। मांगि न खाइ न भूखा सोवे, घर अंगना फिरि आवे। पांच जना की जमाति चलावे, तास गुरू मैं चेला। कहे कबीर उनि देसि सिधाये बहुरि न इहि जग मेला।
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जो रास्ता सुभाष भाई दिखला रहे हैं, साहित्य जगत में सार्थकता की ओर बढ़ता हुआ दमदार कदम है। हिन्दी ब्लॉगिंग और हिन्दी साहित्य का समन्वय निश्चित ही इंसानियत को बेहतरी को ओर तीव्रता से ले जाएगा।
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ इस समीक्षा को पढ़ कर.
जवाब देंहटाएंसमीक्षा हो तो ऐसी……………बेहद सुन्दर मंच उपलब्ध कराया है……………आगे भी ऐसी ही रचनायें पढना चाहेंगे…
जवाब देंहटाएंसाखी की कसौटी पर अपने को कसे जाने के लिए बहुत बहुत आभारी हूं आप का भी और उन सभी साथियों का जिन्होंने कविता के बारे में अपने महत्वपूर्ण विचार व्यक्त किए।
जवाब देंहटाएंबाबा भारती जी! नीरज जी त बहुत पाए के कवि (ग़ज़ल गो) हैं..लेकिन उनके बगल में हमरा फोटो थाना में वांटेड जईसा लग रहा था... खैर एतना सम्मान जो आपने दिया, हम अभिभूत हुए...
जवाब देंहटाएंखडगसिंह जी इस सम्मान के लिए आप सुभाष भाई को रिमांड पर लीजिए। यह सब उनकी ही कारगुजारी है।
जवाब देंहटाएंसाहित्य को बढ़ावा देने का उत्कृष्ट प्रयास है....आभार
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