अशोक रावत की ग़ज़लों ने काव्यप्रेमियों को आलोड़ित किया. रावत जी की रचनात्मक उर्जा उनके गहरे सामाजिक अनुभवों और सरोकारों की उपज है. वे ऐसे रचनाकार हैं, जो बहुत आसानी से अपने निजी अनुभवों को ऐसी जमीन दे देता है, जो निजीपन से बाहर निकलकर सबके अनुभव का हिस्सा बन जाते हैं. वे अपनी गंभीर और थका देने वाली कार्यालयीय जिम्मेदारियों के बीच शब्दों से भी जूझते रहते हैं. कई बार ऐसे ही क्षणों में भीतर कुछ चमकता है और उनकी सारी थकन मिट जाती है. वे मानते हैं कि एक अच्छा कवि होने के लिए एक अच्छा आदमी होना बहुत जरूरी है. उनके व्यवहार में भी यह नजर आता है. इसीलिये उनकी गजलें सीधे अपने पाठक से बतियाती हुई प्रस्तुत होती हैं.
साखी पर उनकी गज़लें पढ़कर शायर नीरज गोस्वामी ने कहा, रावत जी की बेजोड़ ग़ज़लों के साथ, इससे बेहतर साखी का आगाज़ नहीं हो सकता था. सकारात्मक सोच और ज़माने की दुश्वारियों को निहायत ख़ूबसूरती से रावत जी ने अपनी ग़ज़लों में प्रस्तुत किया है. ग़ज़ल के कहन में ताजगी और रवानी है. मेरी ढेरों दाद उन तक पहुंचाए. साखी को इस लाजवाब प्रस्तुति पर मेरी ढेरों शुभकामनाएं . नीरज ने रावत जी को कोट किया, "सारी कलाएं जीवन में आनंद की सृष्टि के लिये हैं लेकिन न जाने क्यों और किन लोगों ने काव्य कला को घटनाओं और दुर्घटनाओं का गोदाम बनाकर रख दिया है जिसमें घुसते ही साँस घुटने लगती है. " "मेरा सफ़र किसी मंच पर जाकर ख़त्म नहीं होता. मेरी मंज़िल आदमी के मन तक पहुँचने की है. मैं जानता हूँ यह बहुत कठिन काम है लेकिन आसानियों में मुझे भी कोई आनंद नहीं आता." और कहा कि अशोक जी के विचार उनकी ग़ज़लों की तरह ही प्रेरक हैं...कितनी सहजता से उन्होंने कितनी सच्ची बात कह दी है....नमन है उनकी कलम को.
तिलक राज कपूर ने कहा कि इन लाजवाब ग़ज़लों को पढ़कर; समझकर नतमस्तक । खूबसूरत भाव, कथ्य व शिल्प। नि:शब्द हूँ। कहीं-कहीं जो अटकाव दिखा वह शायद आप स्पष्ट कर सकें।
मनुष्यों की तरह यदि पत्थरों में चेतना होती,
कोई पत्थर मनुष्यों की तरह निर्मम नहीं होता.
इस शेर में कुछ गंभीर समस्या है, पहली बात तो यह है कि बावज़्न होते हुए भी पहला मिस्रा प्रवाह में नहीं है जिसका मुख्य कारण इस बह्र के रुक्न 'मफ़ाईलुन्' की प्रकृति है। दूसरी समस्या यह है कि दूसरी पंक्ति कहती है कि पत्थर चेतनाविहीन होते हुए भी मनुष्यों की तरह निर्मम होता है। अचेतन से निर्मम का यह संबंध असंगत है। अगर यह भी मान लिया जाये कि पत्थर को अचेतन नहीं मनुष्यों जैसी चेतना से विहीन माना गया है तो काव्य-प्रवाह की दृष्टि से सरलता की समस्या है। इस शेर की मूल भावना यह ध्वनित होती है कि मनुष्य निर्मम होता है और पत्थर नहीं लेकिन गठन में यह प्रभाव उत्पन्न नहीं हो पा रहा है। इस शेर से ध्वनित बात जो मुझे समझ आई वो कुछ ऐसे है कि:
अगर पत्थर में होती चेतना इन्सान के जैसी
कोई पत्थर किसी इन्सान सा निर्मम नहीं होता।
या
मनुष्यों सी नहीं है चेतना, फिर भी कोई पत्थर
किसी इंसान के जैसा कभी निर्मम नहीं होता।
एक और बात ---
परिंदों की ज़रूरत है खुला आकाश भी लेकिन,
कहीं पर शाम ढलते ही ज़रूरी है ठिकाना भी.
खुला आकाश परिंदों की मुख्य ज़रूरत है लेकिन पहली पहली पंक्ति में ये ज़रूरत सामान्य हो गयी है. शेर में जो कहना चाहा गया है वह कुछ ऐसा लगता है कि:
खुले आकाश की चाहत परिंदों को रही लेकिन
ढले जब शाम तो उनकी ज़रूरत है ठिकाना भी.
देवी नागरानी का कहना है कि सब की सब ग़ज़लें अपने शायरी के फन से लबालब. पढ़ते हुए गुनगुनाहट का तत्व लिए हुए. रावत जी को मेरी शुभकमनयें इस सुंदर प्रस्तुति के लिए.
प्रतुल वशिष्ठ के मुताबिक 'गज़लकार' अपनी ही गजलों का श्रोता या पाठक होना नहीं चाहता. कभी-कभी 'कविता' या 'ग़ज़ल' को श्रोताभाव से पढ़कर दोहरे सुख को लेना भी नहीं छोड़ना चाहिये.
बढ़े चलिये, अँधेरों में ज़ियादा दम नहीं होता,
निगाहों का उजाला भी दियों से कम नहीं होता. ......
को प्रतुल ने बहुत उम्दा शेर कहा.
भरोसा जीतना है तो ये ख़ंजर फैंकने होंगे,
किसी हथियार से अम्नो- अमाँ क़ायम नहीं होता
को लाजवाब बताया.
डा त्रिमोहन तरल ने कहा, हिन्दी भाषा के संस्कारों और मानवीय सरोकारों से सराबोर ग़ज़लें आदरणीय रावतजी की ही हो सकतीं थीं . पढ़ने वालों को आनंद आना ही था. रावतजी को बधाई और राय साहब को धन्यवाद.
संजीव गौतम और सुमन ने भी साखी के पुनरारंभ की सराहना की.
२८ जुलाई शनिवार को पढ़िए शायर तिलकराज कपूर की रचनाएँ
मेरी समझ से ग़ज़ल की असली कसौटी प्रभावोत्पादकता है । ग़ज़ल वही अच्छी होगी जिसमें असर और मौलिकता हो, जिससे पढ़ने वाले समझे कि यह उन्ही की दिली बातों का वर्णन है। रावत की गज़लों मे प्रभावोत्पादकता से परे भी बहुत कुछ देखने को मिलती है । साखी पर हो रही हलचलों को देखकर खुशी हुयी ।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ..
जवाब देंहटाएंसमग्र गत्यात्मक ज्योतिष
Bade dinon se kuchh bhee padha nahee tha....aap padhne ka man ho raha hai.
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