गुरुवार, 28 जून 2012

अशोक रावत की गज़लें 8 जुलाई को

अशोक  रावत की गज़लें  
साखी के  अगले अंक में 
रविवार  8 जुलाई को। 

कविता, उसके स्वरुप, जीवन में उसकी जरूरत पर कवि  की टिप्पणी के साथ।

शुक्रवार, 22 जून 2012

जाइबे को जगह नहीं, रहिबै को नहिं ठौर


मित्रों, लम्बे अन्तराल के बाद साखी को फिर से आरम्भ दे रहा हूँ। लीजिये कबीर के कुछ दोहों का भावान्तर प्रस्तुत है। यह प्रयास मैंने खुद किया है। देखिये कैसा बना है। 

 
१. 
 कबीर यहु घर प्रेम का,
 खाला का घर नाहिं.
शीश  उतारे हाथि  करि,
 तब पैसे घर मांहि
--------------
नहीं तुम प्रवेश नहीं 
कर सकते यहाँ
दरवाजे बंद हैं तुम्हारे लिए

 यह खाला का घर नहीं
कि जब चाहा चले आये

 पहले साबित करो खुद को
जाओ चढ़ जाओ 
सामने खड़ी छोटी पर
कहीं रुकना नहीं
किसी से रास्ता मत पूछना
पानी पीने के लिए 
जलाशय पर ठहरना नहीं
सावधान रहना
आगे बढ़ते हुए  
फलों से लदे पेड़  देख 
चखने की आतुरता में
उलझना नहीं
भूख से आकुल न हो जाना

जब शिखर बिल्कुल पास हो
तब भी फिसल सकते हो
पांव जमाकर रखना
चोटी पर पहुँच जाओ तो
नीचे हजार फुट गहरी
खाई में छलांग लगा देना
और आ जाना 
दरवाजा खुला मिलेगा

 या फिर अपनी आँखें 
चढ़ा दो मेरे चरणों में
तुम्हारे अंतरचक्षु 
खोल दूंगा मैं
अपनी जिह्वा कतर दो
अजस्र स्वाद के 
स्रोत से जोड़ दूंगा तुझे 
कर्णद्वय  अलग कर दो
अपने शरीर से 
तुम्हारे भीतर बांसुरी 
बज उठेगी तत्क्षण
खींच लो अपनी खाल
भर  दूंगा तुम्हें 
आनंद  के स्पंदनस्पर्श  से

 परन्तु अंदर नहीं
आ सकोगे इतने भर से
जाओ, वेदी पर रखी 
तलवार उठा लो
अपना सर काटकर 
ले आओ अपनी हथेली
पर सम्हाले
दरवाजा खुला मिलेगा

 यह प्रेम का घर है
यहाँ शीश उतारे बिना
कोई नहीं पाता प्रवेश
यहाँ इतनी  जगह नहीं 
कि दो समा जाएँ
आना ही है तो मिटकर आओ
दरवाजा खुला मिलेगा.
 २.
 कबीर पूछै राम सूं , 
सकल भुवनपति राइ।
सबहीं करि अलगा रहौ,
 सो विधि हमहिं बताइ।
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क्या करूं करघे का
कैसे छोड़ दूं इसे
सबका पेट पलता है
इसी के ताने-बाने से
बीवी बना ली हमने
झोपड़ी भी डाल ली
अब रोटी का क्या करूं
कौन जुटायेगा
नून, तेल, लकड़ी
कमाल तो अपना पुत्तर है
बात नहीं सुनता पर
कैसे घर से निकाल दूं
देखा नहीं जाता
पंडित, मुल्ला का पाखंड
वेद-कुरान का द्वंद्व
ढोंगियों का छल, फरेब
मन करता है
नोच लूं चुटिया
खुरच दूं त्रिपुंड
बाँग  देने वालों के मुंह
पर ताले जड़ दूँ
तुम्हीं बताओ
आखिर चुप कैसे रहूं
तुमने तो रची दुनिया
त्रिभुवनपति कहलाये
पर जगत के झगड़े
निपटाने तो कभी न आये
परिवार बनाकर भी
सबसे अलग धूनी रमाये
बता दो न, आखिर कैसे
मैं भी रहूँगा बिल्कुल वैसे 

   3.
जाइबे को जगह नहीं
रहिबै को नहिं ठौर
कहै कबीरा संत हौं
अविगति की गति और
----------------
सूर्य जलकर
रौशनी देता है विश्व को
चंद्रमा, ग्रह, तारे
निरालंब गतिमान हैं
निरंतर, बिना टकराये

पृथ्वी अपनी धुरी पर
नाचती रहती है
अविरल, अनथक
अन्तरिक्ष में है धरा
परंतु कौन जानता है
कहां टिकी है धुरी

सृजन और विनाश का
क्रम टूटता ही नहीं कभी
जड़-चेतन पैदा होते हैं
क्षरित होते हैं और
नष्ट हो जाते हैं
सृष्टि, स्थिति, लय
का सिलसिला रुकता नहीं

कौन है इसके पीछे
सक्रिय अव्यक्त
निराधार, निर्विकार
किधर से पहुंचें
कहां है रास्ता
कहां रखें पांव
नहीं सूझता कोई ठांव


  4.
जाका गुरु भी अंधला, 
चेला खरा निरंध
अंधा- अंधा ठेलिया
दून्यू कूप पड़ंत
---------------
किससे पूछते हो
पता मंजिल का
जो कभी चला
ही नहीं उधर
जो कभी शिखर पर
चढ़ा ही नहीं
जो अपना रास्ता भी
नहीं पहचानता ठीक से

जिसकी आंखों में
काली चमक है
धोखे की, पाखंड की
जो जानता ही नहीं
रौशनी का मतलब

अंधे हो तुम भी शायद
तुम्हें नहीं चाहिए सच
नहीं चाहिए सूरज
नहीं चाहिए भोर
तुम हिस्सा बंटाना
चाहते हो सिर्फ
छद्म की कमाई में

अंधे की लकड़ी
आखिर  कैसे बन
सकेगा दूसरा अंधा

दुर्गम पथ है यह
कांटों से भरा हुआ
सांप सी टेढ़ी-मेढ़ी
पसरी हैं जगह-जगह
गहरी घाटियां
सूखी घास में दबे हैं
मौत से मुंह बाये
निष्चेष्ट कुएं

न मंजिल का पता
न रास्ते की खबर
न द्रष्टा पथद्रष्टा
न विवेक की नजर

फिर जाओगे कैसे पार
दोनों एक दूसरे पर भार

5.
जीवन मृतक ह्वै रहे
तजै जगत की आस
तब हरि सेवा आपै करे
मति दुख पावै दास
---------------
मृत्यु का स्वागत
कर सकते हो जीतेजी
मार सकते हो
खुद को अपने ही
हाथ के खंजर से?
हां तो आओ तुम्हें
आवाज दे रहा है
परम योद्धा परम गुरु

कोई इच्छा तो शेष नहीं
है तो मत आना आगे
मर नहीं पाओगे तुम
ईर्ष्या, राग, द्वेष तो नहीं
मन के किसी कोने में
जांच लो ठीक से
अन्यथा श्वांस चलता
ही रहेगा निरंतर
बचे रहने की आस में

अनन्य भाव से आओ
कंचन, कीर्ति, कामिनी के
मोहांधकार को चीरकर
बिना चाह, बिना चिंता

आ जाओ संपूर्ण
समर्पण के साथ
तन, मन, प्राण
सौंप दो मुझे
तुम्हारे सारे कर्तव्य
ओढ़ लूंगा मैं
योग-क्षेम वहाम्यहम्

संपर्क --9455081894
विनीत खंड-6, गोमतीनगर, लखनऊ 

हां, आज ही, जरूर आयें

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