प्रिय भाई नीरज से माफी चाहूँगा कि उन्हें समेट नहीं पाया. कुव्वत नहीं जुटा पाया. कुव्वत है भी नहीं मुझमें उन जैसे सरल और विराट कवि को समेटने की. समय ने इस तरह बाँध रखा था कि छुड़ा नहीं सका खुद को. पर अब धीरे-धीरे वक्त मेरी पकड़ में आता जा रहा है, उसकी मेरे ऊपर पकड़ ढीली पड़ रही है. भाई अविनाश, राजेश उत्साही और अन्य मित्रों का आग्रह मुझे हमेशा जगाता रहा है. साखी को फिर से आप तक पहुँचाने को तैयार हो रहा हूँ. बहुत जल्द मेरे अग्रज और हिन्दी गजल में एक बड़ा नाम चन्द्रभान भारद्वाज की गजलों के साथ उपस्थित होऊंगा. आप सब का पहले जैसा प्यार मिलेगा ऐसी उम्मीद है.
बाबा जोगी एक अकेला, जाके तीरथ बरत न मेला। झोली पत्र बिभूति न बटवा, अनहद बैन बजावे। मांगि न खाइ न भूखा सोवे, घर अंगना फिरि आवे। पांच जना की जमाति चलावे, तास गुरू मैं चेला। कहे कबीर उनि देसि सिधाये बहुरि न इहि जग मेला।
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हां, आज ही, जरूर आयें
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राजेश उत्साही लम्बे समय से रचना कर्म से जुड़े हुए हैं। उन्होंने मप्र की अग्रणी शै क्षिक संस्था एकलव्य में 1982 से 2008 तक कार्य किया। स...
यह तो तपन के बाद बारिश की पहली बूंद के जैसा अहसास है। बरसो बरसो हम कब से तरस रहे हैं।
जवाब देंहटाएं*
तो साखी का चबूतरा फिर से आबाद होगा। शुभकामनाएं।
हम भी इन्तजार कर रहे हैं.
जवाब देंहटाएंआपका इन्तजार रहेगा!
जवाब देंहटाएंविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
namaskar !
जवाब देंहटाएंsubhash jee !
BAS AAP NE THODI SI ANGDAAI LI HAI AAGE KE SAFAR KE LIYE ,SAAKHI KA RASSAWAN KARNE KE LIYE BETAABI HAI .
SAADR
प्यार बेशुमार
जवाब देंहटाएंप्यार तारणहार
प्यार से प्यार
शब्दों का दुलार।