बाबा जोगी एक अकेला, जाके तीरथ बरत न मेला। झोली पत्र बिभूति न बटवा, अनहद बैन बजावे। मांगि न खाइ न भूखा सोवे, घर अंगना फिरि आवे। पांच जना की जमाति चलावे, तास गुरू मैं चेला। कहे कबीर उनि देसि सिधाये बहुरि न इहि जग मेला।
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हां, आज ही, जरूर आयें
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बन्धु, मेरा लखनऊ छूट चूका है, आपको इल्म होगा। आपका नया पता क्या है और फोन नं , सूचित करें .
जवाब देंहटाएंबधाई , पत्रिका के लिए।
Thanks for sharing nice line
जवाब देंहटाएंPublish your book
अति सुंदर
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