tag:blogger.com,1999:blog-954846169421193068.post7906751495040895876..comments2023-07-07T15:27:40.554+05:00Comments on समकालीन सरोकार : मनोज भावुक की गजलें Subhash Raihttp://www.blogger.com/profile/15292076446759853216noreply@blogger.comBlogger56125tag:blogger.com,1999:blog-954846169421193068.post-25555261204218503312015-03-15T19:05:58.283+05:002015-03-15T19:05:58.283+05:00भाई मनोज भावुक के ग़ज़ल संसार से गुजरे के मौका मीलल....भाई मनोज भावुक के ग़ज़ल संसार से गुजरे के मौका मीलल. मन रमल बा. भोजपुरी भासा में अतना सांस्कारिक आ बाबह्र ग़ज़ल कमहीं देखे में आइल बाड़ी स. त ओह हिसाब से हम भावुकजी के दिल से बधाई देत बानीं. <br />एह पोस्ट पर हम बड़ा विलम्ब से आ रहल बानीं. बाकी ई बात जरूर भइल बा जे सभ विद्वानन के टिप्पणी पढ़े आ गुने के मीलल. <br />निकहा सार्थक चर्चा भइल. मन खूस बा. <br />शुभ-शुभ<br />Saurabhhttps://www.blogger.com/profile/01860891071653618058noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-954846169421193068.post-37771717199832362332011-12-13T17:05:05.000+05:002011-12-13T17:05:05.000+05:00manoj bhai hamen aapse kuchh kam haimanoj bhai hamen aapse kuchh kam haiAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-954846169421193068.post-75570572076877416522010-10-07T18:47:45.218+05:002010-10-07T18:47:45.218+05:00‘साखी’ के सम्मानित पाठकगण व लेखकगण,
सादर अ...‘साखी’ के सम्मानित पाठकगण व लेखकगण,<br /> सादर अभिवादन!<br />यदि आ.श्री राजेश उत्साही जी की निम्नांकित टिप्पणी (जिस पर ऊपर मैंने अपनी निजी वैचारिक असहमति व्यक्त की है) को सही मान लिया जाए, तो (पुराने नामचीन शोअरा को तो छोड़िये)समकालीन शाइर बशीर बद्र जी, नीरज जी एवं निदा फाज़ली जी से लेकर वसीम बरेलवी जी, उर्मिलेश जी, अशोक अंजुम जी एवं उनके बाद तक के हज़ारों नवोदित शोअरा (शाइरों)की ग़ज़लों में से असंख्य अशआर निकालकर बाहर कर देने पड़ेंगे! क्या उस स्थिति के लिए हमारा ग़ज़ल-संसार तैयार है? इस पर विचार करें, व्यक्तिगत तौर पर मुझे लगता है कि इस बिन्दु पर विस्तृत विमर्श की आवश्यकता है। <br /><br />पुनः देखें-(श्री उत्साही जी के अनुसार):<br /> <br />"१.पता ई बा कि महल ना टिके कबो अइसन<br />तबो त रेत प बुनियाद लोग धर जाला<br /><br />२.अगर जो दिल में लगन, चाह आ भरोसा बा<br />कसम से चाँद भी अँगना में तब उतर जाला<br /><br />यूं देखने में दोनों ही बातें अपनी जगह सही हैं। पर एक ही ग़ज़ल में वे फिट नहीं बैठती।"<br /><br />मैं विनम्रतापूर्वक पूछना चाहूँगा(यदि श्री उत्साही जी यह बता सकें) कि आख़िर उक्त दोनों ही बातें किस आधार पर एक ही ग़ज़ल में फ़िट नहीं बैठती ? मुझे प्रतीक्षा रहेगी...जी!जितेन्द्र ‘जौहर’ Jitendra Jauharhttps://www.blogger.com/profile/06480314166015091329noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-954846169421193068.post-42412388285569744822010-10-06T22:45:03.167+05:002010-10-06T22:45:03.167+05:00भाई मनोज भावुक जी से अपेक्षा है कि वे स्वयं भी उत्...भाई मनोज भावुक जी से अपेक्षा है कि वे स्वयं भी उत्साही जी द्वारा उठाए गए उक्त सवालों पर अपना पक्ष रखें...और रखना भी चाहिए।जितेन्द्र ‘जौहर’ Jitendra Jauharhttps://www.blogger.com/profile/06480314166015091329noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-954846169421193068.post-84200805938465123932010-10-06T22:24:59.001+05:002010-10-06T22:24:59.001+05:00शे’र-१ के पार्श्व से कतिपय लोगों के खोखले कृत्यों ...शे’र-१ के पार्श्व से कतिपय लोगों के खोखले कृत्यों (जिनका कोई ठोस/ मजबूत आधार न हो) के प्रति ग़ज़लकार का ‘अफ़सोस’ भाव दर्शाता हुआ चेहरा झाँक रहा है। स्प्ष्टतः वह इस शे’र में उक्त कोटि के लोगों के प्रति विरोध-मुद्रा में खड़ा है ! उसने अपनी इस विरोधाभिव्यक्ति में ‘रेत पर बुनियाद रखना’ वाला मुहावरा प्रयोग किया है। <br /><br />शे’र-२ में वह समाज को यह प्रेरणा देता हुआ दिख रहा है कि इंसान के दिल में अगर चाह, लगन और भरोसा हो तो वह चाँद-तारे भी पा सकता है, (बल्कि संदर्भित शे’र में अनुस्यूत भावानुसार कहना चाहिए कि) चाँद-तारे ख़ुद-ब-ख़ुद उसके पास चले आएँगे। ऐसे में, मैं श्री उत्साही जी से (यदि वे मेरा आग्रह स्वीकार करें तो) तफ़्सील से एवं समुचित उदाहरणपूर्वक समझना चाहूँगा कि आख़िर वह कौन-सा आधार है जो उन्हें इस निष्कर्ष तक ले आया कि : " दोनों ... बातें ...एक ही ग़ज़ल में ... फिट नहीं बैठती ।" मेरी राय में, उन दोनों बातों के बीच यदि कोई Contradiction उत्पन्न हो रहा होता ,तो श्री उत्साही जी की बात विचारणीय हो सकती थी।जितेन्द्र ‘जौहर’ Jitendra Jauharhttps://www.blogger.com/profile/06480314166015091329noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-954846169421193068.post-3068901736743683812010-10-06T22:19:30.677+05:002010-10-06T22:19:30.677+05:00भावुक भाई की ग़ज़लों पर प्रस्तुत श्री राजेश उत्साह...भावुक भाई की ग़ज़लों पर प्रस्तुत श्री राजेश उत्साही जी के कुछेक तर्कों से मैं सहमत नहीं हो पा रहा हूँ, मैं कल इस बावत अपनी टिप्प्णी Box में Type कर रहा था कि उसी समय डॉ. कपूर साहब की यह प्रतिक्रिया आ गयी : "@राजेश भाई, ग़ज़ल में एक समस्या तो है कि हर शेर का स्वतंत्र अस्तित्व होता है एक पूर्ण कविता की तरह ..." जिसे पढ़कर मुझे लगा कि जब मेरा कथ्य किसी अन्य साथी ने पेश कर ही दिया है , तब पुनरोक्ति-प्रकाशन क्या करना। अतः मैंने अपने लिखे-लिखाए Matter को delete कर दिया। मुझे बाद में पढ़ने पर लगा कि अभी बात पूरी नहीं हुई है। अस्तु, भाई... मैं पुनः आ गया हूँ ।<br /> <br />श्री उत्साही जी के अनुसार : <br /><br />"दूसरी गजल में वे (यानी कि मनोज) विरोधाभासी बातें कहते हैं। पहले यह शेर देखिए-<br />१.पता ई बा कि महल ना टिके कबो अइसन<br />तबो त रेत प बुनियाद लोग धर जाला<br /><br />और अब इसे पढ़ें-<br />२.अगर जो दिल में लगन, चाह आ भरोसा बा<br />कसम से चाँद भी अँगना में तब उतर जाला <br />यूं देखने में दोनों ही बातें अपनी जगह सही हैं। पर एक ही ग़ज़ल में वे फिट नहीं बैठती।"<br /><br />प्रथमतः तो यही कि ग़ज़ल का हर शे’र अपने आपमें एक स्वतंत्र इकाई होता है। अतः यह कोई ज़रूरी नहीं कि पूरी ग़ज़ल का हर शे’र अर्थ/भाव/विचार की दृष्टि से परस्पर संबद्ध हो...Co-related हो। बड़े-बड़े उस्ताद शाइरों से लेकर नवोदितों तक इसके उदाहरण भरे पड़े हैं। ...ऐसे में समीक्षा-कर्म के अंतर्गत समूची ग़ज़ल में Unity & Coherence की तलाश करना, शाइर के साथ सरासर अन्याय होगा ; फिर चाहे वह शाइर स्वयं उत्साही जी हों या फिर मनोज भावुक जी अथवा मैं जितेन्द्र ‘जौहर’ या फिर कोई अन्य। यदि भाव की परस्पर सम्बद्धता चाहिए, तो उसके लिए गीत है, कविता है, सॉनेट है। ग़ज़ल के हर शे’र का एक स्वतंत्र इकाई होना भी ग़ज़ल के प्रति कवियों के आकर्षण का एक कारण है!<br /><br />ऐसे में, उत्साही जी का यह कथन कि : "...दोनों ही बातें अपनी जगह सही हैं। पर एक ही ग़ज़ल में वे फिट नहीं बैठती" मुझे कहीं से भी तर्कसंगत / न्यायोचित नहीं लगता। मनोज भावुक के ये दोनों शे’र अच्छे ही नहीं, बल्कि एक ही ग़ज़ल में पूरे आत्मविश्वास के साथ रखे जा सकते हैं, इसमें कहीं किसी ‘किन्तु-परन्तु’ की गुंजाइश नहीं है। मेरा तर्क यह कि - उपरांकित संदर्भित शे’र-१ के कथ्य का शे’र-२ के कथ्य से कोई भी लेना-देना नहीं ; दोनों अलग-अलग बातें हैं । ...Contd...जितेन्द्र ‘जौहर’ Jitendra Jauharhttps://www.blogger.com/profile/06480314166015091329noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-954846169421193068.post-91579569466690309682010-10-06T16:26:52.853+05:002010-10-06T16:26:52.853+05:00@ आ.भाई मनोज भावुक जी,
आपने जो कृतज्ञता-ज्ञापन किय...@ आ.भाई मनोज भावुक जी,<br />आपने जो कृतज्ञता-ज्ञापन किया, उसके लिए हार्दिक ‘धन्यवाद’ स्वीकारें!मेरे विचार आपकी अभिव्यक्ति बनकर सामने आ सके, यह जानकर ख़ुशी हुई। ‘साखी’...! शुक्रिया...मुझे मनोज जैसे भावुक एवं संजीदा कवि से मिलवाने के लिए!<br /><br />@ आ. भाई PRAN (प्राण) जी,<br />मेरी विचाराभिव्यक्ति मनोज जी की ग़ज़लों को समझने की दिशा में आपके कुछ काम आ सकी, मेरा सौभाग्य! वह तमाम श्रम सार्थक हुआ। आपकी सद्भावना/सदाशयता को सलाम करता हूँ, जी... !क़ुबूल करें!जितेन्द्र ‘जौहर’ Jitendra Jauharhttps://www.blogger.com/profile/06480314166015091329noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-954846169421193068.post-30332116314240739242010-10-06T01:43:01.426+05:002010-10-06T01:43:01.426+05:00किसी बागीचे की बगल से गुज़रते हुए कोई खुशगवार गंध ...किसी बागीचे की बगल से गुज़रते हुए कोई खुशगवार गंध नासिका-द्वार से होती हुई जब मन के भीतर अपना स्थान बना लेती है तो मन का स्वामी ये नहीं पूंछता की जिन फूलों से ये गंध आ रही है उनका नाम क्या है। गंध का भरपूर आनंद लेने के लिए फूलों के नाम जानना उतना ज़रूरी भी नहीं है जितना की गंध का खुशगवार होना। युवा रचनाकार मनोज भावुक की गज़लें गज़लियत की कसौटी पर कितनी खरी उतरतीं हैं यह तो ग़ज़ल के तमाम बड़े उस्ताद ही जानें अपने राम तो भावुक की तरह ही अभी तक गज़ल के विद्यार्थी ही हैं। लेकिन इतना कहना चाहता हूँ की मैंने भोजपुरी में गज़लें पहली बार पढ़ीं हैं और कई दूसरे लोगों की तरह ही मैं भी भोजपुरी नहीं जानता। बावजूद इसके इन्हें पड़कर तबियत प्रसन्न हो गयी। खुशगवार गंध सीधे दिल में उतर गयी। <br /> अबकी दियरी के परब अइसे मनावल जाए<br /> मन के आँगन में एगो दीप जरावल जाए<br /><br /> रौशनी गाँव में, दिल्ली से ले आवल जाए<br /> कैद सूरज के अब आजाद करावल जाए<br /> <br /> हिन्दू, मुस्लिम ना, ईसाई ना, सिक्ख ई भाई<br /> अपना औलाद के इन्सान बनावल जाए <br />ऐसे अशआर किसी भी भाषा में लिखे हुए हो सकते हैं। फर्क इससे नहीं पड़ता। फर्क इससे पड़ता है कि वे सीधे दिल में उतर रहे है या नहीं। मनोज भाई के शेर सीधे दिल में उतरकर अपनी गुणवत्ता सिद्ध कर रहे हैं। ग़ज़ल का यह विद्यार्थी (उन्हीं की स्वीकारोक्ति) निश्चित रूप से प्रखर विद्यार्थी है और लेखन की यात्रा में काफी आगे जाएगा। मेरा ऐसा विश्वास है और कामना भी।डॉ.त्रिमोहन तरलhttps://www.blogger.com/profile/05559939505612385680noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-954846169421193068.post-55996018234982091992010-10-05T23:23:06.304+05:002010-10-05T23:23:06.304+05:00Shri Manoj Bhavuk kee sabhee gazal padh gaayaa
ho...Shri Manoj Bhavuk kee sabhee gazal padh gaayaa <br />hoon . Main bhojpuree ke vyakaran aur muhavre se parichit nahin hoon phir bhee janaab Jitendra<br />Johree kee sameeksha ke sahaare in gazalon kee <br />bhasha aur bhavon ko samajhne mein mujhe koee <br />pareshanee nahin huee. kisee kee gazalon par aesaa saarthak aur taarkik likhne waale bahut kam hain . Johree sahib prashansa ke haqdaar hain .Achchhee aur marmsparshee gazalon ke liye <br />shri Manoj ko main hardik badhaaee detaa hoon.<br />Ant mein ek baat kahnaa chaahoonga vah yah ki <br />gazal kaa har sher swatanra hotaa hai . Gazal mein ek sher virah par bhee kahaa jaa sakta hai aur dooja sher sanyog par bhee . vibhinn bhaavon se piroee huee hotee hai gazal kee maalaa .pran sharmahttps://www.blogger.com/profile/14658673113780007596noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-954846169421193068.post-78446644327812949682010-10-05T14:11:55.409+05:002010-10-05T14:11:55.409+05:00maoj bhai
namaksaar !
aap ko apni matra bhasha ke...maoj bhai <br />namaksaar !<br />aap ko apni matra bhasha ke liye samman prapt hone pe hardik badhai .<br />dhanywadसुनील गज्जाणीhttps://www.blogger.com/profile/12512294322018610863noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-954846169421193068.post-61985149358039815582010-10-05T11:32:56.743+05:002010-10-05T11:32:56.743+05:00भाई जितेन्द्र ‘जौहर’ जी का मै बहुत शुक्रगुजार हूँ....भाई जितेन्द्र ‘जौहर’ जी का मै बहुत शुक्रगुजार हूँ. बहुत अच्छी समीक्षा की है उन्होंने मेरे गजलों की. धन्यवाद साखी कि जौहर जी से मेरा परिचय हुआ. वो मेरे हीं शहर के हैं लेकिन हम दोनों अपरिचित थे.<br /> <br />संजीव गौतम -<br />शुक्रिया संजीव भाई , आपने सच कहा साखी पर प्रकाशित होना गर्व की बात है। तारीफ़ के लिए शुक्रिया .<br /> <br />वैसे और भी बहुत सारे सवाल उठे हैं जिसका जबाब सुधी- विद्वान पाठको ने हीं दे दिया है . अब मुझे कुछ कहने की जरुरत नहीं.<br />मै फिर कह रहा हूँ कि मै अभी गजल का विद्यार्थी हूँ . सिख रहा हूँ. आप सबने जो रास्ता दिखाया है उस पर चलने की कोशिश करूंगा . जो त्रुटियाँ रह गयीं हैं,उनको ठीक करूंगा.<br />एक भोजपुरी गजल-संग्रह प्रकाशित है ' तस्वीर जिन्दगी के' उसका लिंक दे रहा हूँ. ताकि आप भोजपुरी गजलों का आस्वादन कर सकें<br />http://www.manojbhawuk.com/old/jindgi6.htm<br /> <br />स्नेह- दुलार और मार्गदर्शन के लिए आप सबके प्रति आभार व्यक्त करता हूँ.मनोज भावुकnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-954846169421193068.post-12492314058482648562010-10-05T11:10:37.708+05:002010-10-05T11:10:37.708+05:00अविनाश वाचस्पति और सुरेश यादव को बहुत-बहुत धन्यवाद...अविनाश वाचस्पति और सुरेश यादव को बहुत-बहुत धन्यवाद .सलिल जी भोजपुरी की ही श्रेणी में रखी जाएँ . ये भोजपुरी गजलें हीं है.आप की इस बात से मैं बिल्कुल सहमत नहीं हूं कि यह हिंदी/उर्दू में सोची हुई ग़ज़लें हैं. यानि मौलिक रूप से यह भोजपुरी की गज़लें नहीं हैं. मौलिक रूप से यह भोजपुरी की गज़लें हैं. मै भोजपुरी में ही सोचता हूँ. भोजपुरी मेरी मातृभाषा है. उर्दू या अंग्रेजी के कुछ शब्द आ जाने से ये गजलें उस भाषा की नहीं हो जातीं. ऐसा कोई पहली बार नहीं हुआ है. उर्दू, अंग्रेजी, फारसी या अन्य भाषा के वे शब्द जो भोजपुरी में पच गए हैं ,रच-बस गए हैं, जो बोलचाल में हैं. मेरा मानना है भाषा कि समृधि के लिए रचनाओं में उनका प्रयोग होना चाहिए/ आप एक शेर की बात करते हैं . मैंने अपनी कई गजलों का भोजपुरी से हिंदी में अनुवाद किया है तो क्या हो गया ? भोजपुरी भी तो आखिर हिंदुस्तानी ज़ुबान हीं है .<br />माँ पर मेरी एक भोजपुरी गजल है -<br />http://www.manojbhawuk.com/old/47.हतं<br />इस गजल का हिंदी अनुवाद है -<br />http://www.anubhuti-hindi.org/sankalan/mamtamayi/maa1.हतं<br />एक और भोजपुरी गजल , हिंदी अनुवाद के साथ यहाँ प्रकाशित है -<br />http://manojbhawuk.com/?p=२२४<br />डूबियो शब्द सही है और भोजपुरी में डूबियो हीं लिखा जाता है . हम आदमी को आदमी हीं लिखते हैं अदमी नहीं. jaareeमनोज भावुकnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-954846169421193068.post-66632869731599632412010-10-05T10:33:32.227+05:002010-10-05T10:33:32.227+05:00सर्वत एम० -सर! ऐसा किसने कहा कि 'वा' का इस...सर्वत एम० -सर! ऐसा किसने कहा कि 'वा' का इस्तेमाल कर के इनका भोजपुरीकरण कर लिया जाता है?<br />जब हम भोजपुरी नाटक में किसी अनपढ़ आदमी के लिए संवाद लिखते हैं तो ऎसी भाषा का प्रयोग करते हैं .<br />गजल और गीतों की भाषा अलग होती है .<br />गजल में हम आदमी को अदमी और प्रेम को परेम नहीं लिखते. <br /> माधव मधुकर जी की वह गजल मै पढ़ना चाहूंगा . आप कृपया उस गजल को साखी पर प्रकाशित करें<br /> सर, आपने मुझे भोजपुरी का 'दुष्यंत' सम्बोधित किया है . शुक्रिया. भगवान करें ऐसा हो. लेकिन अभी तो मै गजल का विद्यार्थी ही हूँ .जारीमनोज भावुकnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-954846169421193068.post-17725200254089341222010-10-05T10:13:48.834+05:002010-10-05T10:13:48.834+05:00भाई Arvind Mishra, vedvyathit ,दिगम्बर नासवा,स्वप...भाई Arvind Mishra, vedvyathit ,दिगम्बर नासवा,स्वप्निल कुमार 'आतिश', और राजेन्द्र स्वर्णकार को बहुत-बहुत धन्यवाद.<br /><br />जितेन्द्र ‘जौहर’ -<br />जौहर भाई, आपने तो मेरे मुंह की बात छीन ली है. जो मै कहता वो आपने कह दिया है.<br />भोजपुरी गजलें नुक़्ता-विहीन होती हैं . मेरी गजलों में जहाँ कहीं भी नुक़्ता लगा है वह टंकण त्रुटि है.<br /> <br />सर्वत एम० - बधाई के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद . आपसे न मिल पाने का मुझे भी अफसोस है. कृपया अपना मोबाइल न दें.....जारीमनोज भावुकnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-954846169421193068.post-50618040663072495642010-10-05T10:11:56.422+05:002010-10-05T10:11:56.422+05:00सबको मनोज भावुक का प्रणाम . रांची,रेनुकूट और लखनऊ ...सबको मनोज भावुक का प्रणाम . रांची,रेनुकूट और लखनऊ की सात दिन की यात्रा के बाद नोएडा वापस लौटा हूँ. रांची में विश्व भोजपुरी सम्मलेन की कार्यकारिणी की दो दिवसीय बैठक थी , रेनुकूट घर है और लखनऊ में एक सम्मान समारोह था.<br />अब बात गजलों की. बड़े भाई डा. सुभाष राय ने मुझे अपने दिल में और साखी पर जगह दी, मै उनका शुक्रगुजार हूँ . साखी पर आना गर्व की बात है. <br />वरिष्ठ साहित्यकारों ने जो प्रतिक्रियाएं दीं है, जो आशीर्वाद दिया है उससे मेरा मनोबल बढ़ा है .<br />यहाँ मै सभी प्रतिक्रियाओं का जबाब दे रहा हूँ .<br /> <br /> <br />१. डा. कपूर - <br />ग़ज़ल 2 में शेर 3 की पंक्ति 2 में 'बेहया' शब्द पर वज़्न की ऑंशिक समस्या लग रही है।<br />सही कहा आपने दरअसल यह टंकण त्रुटि है . भोजपुरी में यह शब्द ' बेहाया' होता है.<br />शेर कुछ यूं है -<br />जमीर चीख के सौ बार रोके-टोकेला<br />तबो त मन ई बेहाया गुनाह कर जाला<br />यह गजल यहाँ पढ़ सकते हैं - http://www.manojbhawuk.com/old/4.हतं<br />भोजपुरी गजल -संग्रह 'तस्वीर जिन्दगी के' यहाँ पढ़ सकते हैं - http://www.manojbhawuk.com/old/jindgi6.htm<br /> <br />इसी तरह ग़ज़ल 6 में शेर 7 की पंक्ति 2 में राज की जगह राज़ होना चाहिये,<br />कपूर साहब भोजपुरी में हम नुख्ता नहीं लगाते . इसलिए यह राज ही है जिसका अर्थ है रहस्य .......जारीमनोज भावुकnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-954846169421193068.post-14174580758782529062010-10-04T23:52:56.622+05:002010-10-04T23:52:56.622+05:00भावुक हूँ इसलिए संयम न रख पाया, व्यथित था इसलिए अस...भावुक हूँ इसलिए संयम न रख पाया, व्यथित था इसलिए असंदर्भ लिख गया. मनोज भावुक जी से क्षमा प्रार्थी हूँ कि मेरी बातों से दिशा भटक गई समीक्षा की. पुनः सम्मान तिलक राज साहब और जौहर साहब का.चला बिहारी ब्लॉगर बननेhttps://www.blogger.com/profile/05849469885059634620noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-954846169421193068.post-41648395318023454522010-10-04T23:36:20.607+05:002010-10-04T23:36:20.607+05:00@ आद.श्री सलिल वर्मा जी (उर्फ़ ‘चला बिहारी...’),
...@ आद.श्री सलिल वर्मा जी (उर्फ़ ‘चला बिहारी...’),<br /><br />आपके इस कथन-<br /><br />"...हम बिहारी तो वैसे भी मूढ़ता के पर्याय माने जाते रहे हैं..."<br /><br />-के आलोक में कहना चाहूँगा कि राजकुमार सिद्धार्थ ने यथाकथित ’मूढ़ता’ की उसी धरती (अर्थात् ’बिहार’) में जाकर ’बोध’ पाया था; उसी धरती ने ’सिद्धार्थ’ के अंदर एक ’गौतम बौद्ध’ सिरजा था। <br /><br />यथाकथित ’मूढ़ता’ की इसी धरती का एक ’नालंदा विश्वविद्यालय’ अज्ञान के गहन तम में डूबी दुनिया को रोशनी बाँटता था। <br /><br />जब सारी दुनिया हस्ताक्षर करना सीखने के लिए अक्षर-ज्ञान अर्जित कर रही थी, तब ’मूढ़ता’ की इसी धरती के उक्त शिक्षा-केन्द्र में ज्ञान के उद्दाम सागर की उत्ताल तरंगें अंबर से बतियाने जाती थीं। <br /><br />’मूढ़ता’ की इसी धरती का एक सम्राट ’राजा अशोक’ का चोला उतारकर ’भिक्षुक अशोक’ बन गया था।<br /><br />आप भारत की उसी गौरव-भूमि के लाल हैं! अब जब भी उधर जाना, तो वहाँ की मिट्टी का एक चुटकी चंदन मेरे लिए भी लेते आना...भाई!जितेन्द्र ‘जौहर’ Jitendra Jauharhttps://www.blogger.com/profile/06480314166015091329noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-954846169421193068.post-47400473826898268102010-10-04T23:07:09.625+05:002010-10-04T23:07:09.625+05:00एक और बात सलिल भाई ने यहां टिप्पणी की है,
'हम...एक और बात सलिल भाई ने यहां टिप्पणी की है,<br />'हम बिहारी तो वैसे भी मूढ़ता के पर्याय माने जाते रहे हैं. इसलिए मुझे अगर किसी ने मूढ़ कह दिया होता तो मुझे न ऐतराज़ होता, न ताज्जुब. लेकिन मेरे लपेटे में इब्ने इंशाँ जैसे अज़ीम शायर को कमअक़्ल कह दिया जाना नाक़ाबिलेबर्दाश्त है. एक बार फिर अफ़सोस दो बातों का रहा कि मेरी वज़ह से उस महान शायर की तौहीन हुई.'<br /><br />यह टिप्पणी आपमें से बहुत सों को समझ नहीं आएगी। इसे समझने के लिए आपको मेरे ब्लाग गुलमोहर पर आना पडे़गा। माफ करें यह मेरे ब्लाग का विज्ञापन नहीं है। पर यहां मुझे यह लिखना पड़ रहा है। <br />क्योंकि इसका संदर्भ वहीं से आया है।राजेश उत्साहीhttps://www.blogger.com/profile/15973091178517874144noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-954846169421193068.post-40449050754854034052010-10-04T22:59:02.573+05:002010-10-04T22:59:02.573+05:00सब महानुभावों से आदर के साथ यह कहने आया हूं कि कृप...सब महानुभावों से आदर के साथ यह कहने आया हूं कि कृपया साखी के इस मंच को मजाक और चुहल का मंच न बनाएं तो बेहतर होगा। यह मैं इसलिए भी कह रहा हूं कि यह एक सामूहिक विमर्श का मंच है। <br /><br />व्यक्तिगत ब्लाग पर यह सब चलता रहता है और शायद अच्छा भी लगता है। मेरा मानना है कि वह भी अच्छी बात नहीं है।राजेश उत्साहीhttps://www.blogger.com/profile/15973091178517874144noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-954846169421193068.post-14158162388573880962010-10-04T22:45:29.533+05:002010-10-04T22:45:29.533+05:00@बिहारी ब्लॉगर साहब
क्षमा बड़न को चाहिये, छोटन को...@बिहारी ब्लॉगर साहब<br />क्षमा बड़न को चाहिये, छोटन को उत्पात। मैं तो इसका लाभ बहुत लेता हूँ उँचे कद वालों के साथ।तिलक राज कपूरhttps://www.blogger.com/profile/03900942218081084081noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-954846169421193068.post-23162172900903805712010-10-04T22:43:08.357+05:002010-10-04T22:43:08.357+05:00@राजेश भाई
पिछली टिप्पणी में मुझ से ग़ल्ती हो गय...@राजेश भाई<br />पिछली टिप्पणी में मुझ से ग़ल्ती हो गयी और पोस्ट करते ही ध्यान गया इस बात पर कि आप सोच की दिशा की बात िकर रहे हैं। मैं पूरी तरह से सहमत हूँ। कोई भी रचनाधर्मी हो उसकी रचनाओं में उसकी सोच स्पष्टत: दिखनी चाहिये। यहॉं सोच की मौलिकता का भी प्रश्न है, मौलिक सोच की दिशा एक सी ही रहेगी, अलग-अलग सोच दिखने से आभासित होता है कि बहुत सी जगह से पढ़ा हुआ मसाला रचनाधर्मी ने अपने शब्दों में प्रस्तुत कर दिया है। समीक्षकों की नज़र से यह स्थिति छुपती नहीं है।तिलक राज कपूरhttps://www.blogger.com/profile/03900942218081084081noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-954846169421193068.post-989309554723991222010-10-04T22:29:03.084+05:002010-10-04T22:29:03.084+05:00यदि मेरे उद्धरण "मोगैम्बो ख़ुश हुआ" पर व...यदि मेरे उद्धरण "मोगैम्बो ख़ुश हुआ" पर विचार करें तो पाएँगे कि मोगैम्बो ’मि. इंडिया’ फ़िल्म का एक घोर Negative Character था। है कि नहीं?जितेन्द्र ‘जौहर’ Jitendra Jauharhttps://www.blogger.com/profile/06480314166015091329noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-954846169421193068.post-62207472442339976212010-10-04T22:27:34.342+05:002010-10-04T22:27:34.342+05:00@राजेश भाई
ग़ज़ल में एक समस्या तो है कि हर शेर का...@राजेश भाई<br />ग़ज़ल में एक समस्या तो है कि हर शेर का स्वतंत्र अस्तित्व होता है एक पूर्ण कविता की तरह लेकिन हिन्दी काव्य प्रस्तुति में विषय निरंतरता की प्रथा के कारण ग़ज़ल में दृष्टिकोण बदलने की आवश्यकता पर ध्यान नहीं जाता है। यह स्थिति ग़ज़ल कहने वाले के लिये भी होती है, मेरी बहुत सी ग़ज़ल ऐसी हैं जिनमें विषय निरंतरता है; इसके कारण कई ग़ज़लों में मुझे गुणात्मक समझौते भी करने पड़े हैं लेकिन कठिन लगता है इस विषय निरंतरता को तोड़ना। <br />ग़ज़ल की मूल प्रकृति के अनुसार मनोज भाई ने अगर एक ही ग़ज़ल के अलग-अलग अशआर में विरोधाभासी बातें कही भी हैं तो वह अनुमत्य है।तिलक राज कपूरhttps://www.blogger.com/profile/03900942218081084081noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-954846169421193068.post-46653653055124925752010-10-04T22:22:04.634+05:002010-10-04T22:22:04.634+05:00आद. श्री उत्साही जी,
मैंने जानबूझकर हँसी-मज़ाक की...आद. श्री उत्साही जी,<br /><br />मैंने जानबूझकर हँसी-मज़ाक की मनःस्थिति में ‘दुकान/ दुकानदार’ शब्दों का प्रयोग किया है। आपकी बात पूरी तरह सही है। उधर चूँकि डॉ.कपूर साहब मज़ाक में आ गये थे, सो मेरा भी मूड कर बन गया "Live life, king size"... भाई!<br /><br />पुनश्च, मेरे उस आरम्भिक उद्धरण " मोगैम्बो ख़ुश हुआ" से मेरी उक्त संदर्भित post का इरादा समझा जा सकता है।जितेन्द्र ‘जौहर’ Jitendra Jauharhttps://www.blogger.com/profile/06480314166015091329noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-954846169421193068.post-53798477795934017262010-10-04T21:27:19.999+05:002010-10-04T21:27:19.999+05:00जौहर साहब! आपने जो सम्मान दिया उसका आभार. हम बिहार...जौहर साहब! आपने जो सम्मान दिया उसका आभार. हम बिहारी तो वैसे भी मूढ़ता के पर्याय माने जाते रहे हैं. इसलिए मुझे अगर किसी ने मूढ़ कह दिया होता तो मुझे न ऐतराज़ होता, न ताज्जुब. लेकिन मेरे लपेटे में इब्ने इंशाँ जैसे अज़ीम शायर को कमअक़्ल कह दिया जाना नाक़ाबिलेबर्दाश्त है. एक बार फिर अफ़सोस दो बातों का रहा कि मेरी वज़ह से उस महान शायर की तौहीन हुई. और दूसरी बात के लिए यह जगह मुनासिब नहीं. <br />डॉ. सुभाष राय जी, जिस रिमोट की बात और जिसका चर्चा मैंने किया वह तो वाक़ई आपके हाथ में है, मोहब्बत का रिमोट. अब तो यह हाल है कि <br />बात तुम पर ही ख़त्म होती है,<br />हमसे चाहे कहीं की बात करो.चला बिहारी ब्लॉगर बननेhttps://www.blogger.com/profile/05849469885059634620noreply@blogger.com