tag:blogger.com,1999:blog-954846169421193068.post3141606731327114528..comments2023-07-07T15:27:40.554+05:00Comments on समकालीन सरोकार : डा त्रिमोहन तरल की गज़लें Subhash Raihttp://www.blogger.com/profile/15292076446759853216noreply@blogger.comBlogger11125tag:blogger.com,1999:blog-954846169421193068.post-64173716835135771242010-07-21T20:49:32.507+05:002010-07-21T20:49:32.507+05:00आप सभी यहाँ आये, मेरी ग़ज़लनुमा रचनाओं को पड़ा, अपनी...आप सभी यहाँ आये, मेरी ग़ज़लनुमा रचनाओं को पड़ा, अपनी बहुमूल्य राय दी उसके लिए मैं आप सभी का ह्रदय से आभारी हूँ। मेरा विशिष्ट धन्यवाद आदरणीय श्री प्राण शर्माजी को जिन्होंने मेरी गलतियों/कमजोरियों की ओर सही उँगली उठाकर दूर से ही एक बड़ा भाई होने का बड़ा दायित्व निभाया है। अपनी ओर से इतना ही कहना चाहता हूँ की दरअस्ल मैं मूलतः गीत कार हूँ और ग़ज़ल कहने की मैंने शुरुआत ही की है। लड़खड़ाना तो था ही। लेकिन मित्रो एक वादा ज़रूर करना चाहता हूँ आपसे वह यह किजब शुरुआत कार ही दी है तो ग़ज़ल कहना बंद तो नहीं करूंगा। कमजोरियों को दूर करना सीख करअपनी नयी कोशिशों के साथ आप से फिर इसी ब्लॉग पर भेंट करूंगा ताकि एक बड़े भाई का सही वक़्त पर उँगली उठाना जाया न चला जाय।डॉ.त्रिमोहन तरलhttps://www.blogger.com/profile/05559939505612385680noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-954846169421193068.post-6901751663284628982010-07-21T16:07:46.397+05:002010-07-21T16:07:46.397+05:00gzl me bhut achchhe kthy ko chuna hai yhi gzl ki k...gzl me bhut achchhe kthy ko chuna hai yhi gzl ki khoobi hai ab gzl ka yhi mukam hai sundr rchna <br />bdhai <br />dr.ved vyathitvedvyathithttps://www.blogger.com/profile/02253588002622732897noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-954846169421193068.post-89853364194187662442010-07-21T15:51:47.458+05:002010-07-21T15:51:47.458+05:00khoob surat gazalon ke liye dr.tri mohan saab ko s...khoob surat gazalon ke liye dr.tri mohan saab ko sadhuwad .सुनील गज्जाणीhttps://www.blogger.com/profile/12512294322018610863noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-954846169421193068.post-27908562510701947312010-07-21T11:05:34.970+05:002010-07-21T11:05:34.970+05:00ग़जलों के गुलदस्तों का एक-एक फूल खुशबूदार. क्या कह...ग़जलों के गुलदस्तों का एक-एक फूल खुशबूदार. क्या कहने. मेरी दुआ है कि ये बगिया इसी तरह महकती रहे. ग़ज़ल के इतने सशक्त हस्ताक्षरों को एक मंच पर लाने के लिए आप को हार्दिक बधाई. आशा है आगे और लोग जुड़ते जायेंगे.<br />Madan Mohan 'Arvind'Madan Mohan 'Arvind'https://www.blogger.com/profile/01174037323908245493noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-954846169421193068.post-21800815226312785042010-07-19T20:06:09.294+05:002010-07-19T20:06:09.294+05:00Dr.Trimohan jee kee sabhee gazalen poore manoyog
s...Dr.Trimohan jee kee sabhee gazalen poore manoyog<br />se padh gayaa hoon.Bhaav achchhe hain lekin<br />kahin- kahin chhand ( bahr) , qaafia aur shabd <br />ke wazan ke dosh hain.<br /> Paglee gazal 32 maatraaon ke chhand mein<br />kahee gayee hai.Is mein 16,16 par yati hotee<br />hai.Dr. sahib ke adhikaansh sheron kee pahli <br />panktiyon mein 16,14 par yati hai.<br /> Doosre gazal mein " rukee" aur " chalee "<br />ke saath " zameen " qafia sahee nahin hai.<br /> Teesree gazal ke ek sher mein " sukun"<br />shabd bahr mein sahee nahin hai. " sukun" shabd <br />kaa wazan hai - 12 . Wazan chahiye - 21 .lihazaa<br />sher khaariz hai.pran sharmahttps://www.blogger.com/profile/14658673113780007596noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-954846169421193068.post-4330115686768855622010-07-19T15:42:59.242+05:002010-07-19T15:42:59.242+05:00त्रिमोहन जी वाकई श्रेष्ठ रचनाकार हैं, अच्छा लगा मि...त्रिमोहन जी वाकई श्रेष्ठ रचनाकार हैं, अच्छा लगा मिलकर।<br />................<br /><a href="http://ss.samwaad.com/" rel="nofollow">नाग बाबा का कारनामा।</a><br /><a href="http://sb.samwaad.com/" rel="nofollow">महिला खिलाड़ियों का ही क्यों होता है लिंग परीक्षण?</a>Science Bloggers Associationhttps://www.blogger.com/profile/11209193571602615574noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-954846169421193068.post-88806596483297416222010-07-18T17:44:00.187+05:002010-07-18T17:44:00.187+05:00डॉ त्रिमोहन तरल की रचनाओं में अलग अलग सन्दर्भ हैं ...डॉ त्रिमोहन तरल की रचनाओं में अलग अलग सन्दर्भ हैं और किसी कवि की यह ख़ास विशेषता होती है कि वह अपनी कलम ज़िन्दगी के हर मोड़ से गुज़ारे , ज़िन्दगी के हर मायनों की स्याही से अपनी कलम को भरे और डॉ त्रिमोहन जी ने अपनी कलम को यह अर्थ दिया है.............हर रचना की अपनी अहमियत है, लेकिन 'प्यार' ..... ज़िक्र आते खुदा से रूबरू होने का मौका मिलता है और अपना आप भी खुदा हो जाता है....<br />तेरे सँग चलने में तपती हुई सड़क पर भी<br />ख़ुशनुमा रहता है सारा सफ़र मुहब्बत का<br /><br />इन पंक्तियों में जलती सड़क को शीतल किया है प्यार के एहसास ने !रश्मि प्रभा...https://www.blogger.com/profile/14755956306255938813noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-954846169421193068.post-53970502747616552032010-07-17T17:43:57.849+05:002010-07-17T17:43:57.849+05:00तरल जी की चारों ग़ज़लें पारम्परिक और नई सोच का प्र...तरल जी की चारों ग़ज़लें पारम्परिक और नई सोच का प्रतिबिम्ब हैं, जहां पहली और तीसरी ग़ज़ल में अपने समय का बोध है तो दूसरी और चैथी ग़ज़ल में पारम्परिकता ज्यादा. तरल जी का मूल स्वर रोमानी है ये इन ग़ज़लों से स्पष्ट है. <br /> तेरे सँग चलने में तपती हुई सड़क पर भी<br /> ख़ुशनुमा रहता है सारा सफ़र मुहब्बत का<br /><br />क्या ज़रुरत है चाँद को ज़मीं पे लाने की<br />इस ज़मीं को ही आसमान कर मुहब्बत का<br />लेकिन तरलजी अपने समय के भी शाइर हैं ये उनकी पहली और तीसरी ग़ज़ल से बखू़बी नुमाया हो रहा है. <br />मुफ़लिसी भूख मिटाती है अश्क़ पी-पीकर<br />मुल्क़ को खा रहे कुछ लोग निवालों की तरह<br /><br />कल जिसपे खड़े होकर चूमा था फ़लक उसने<br />वो उसके इरादों की पुरसख्त ज़मीं होगी<br />पहली दिल्ली वाली रदीफ से एक किसी नामालूम शाइर का एक शेर याद आ रहा है- दिल की बस्ती पुरानी दिल्ली है.<br /> जो भी आया है उसने लूटा है.<br />तरल जी को चारों ग़ज़लों के लिए बधाई के साथ-संजीव गौतमhttps://www.blogger.com/profile/00532701630756687682noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-954846169421193068.post-10387990794766326992010-07-17T13:19:45.777+05:002010-07-17T13:19:45.777+05:00तरल जी की तरलता और सरलता में बहता ही चला गया। कुछ ...तरल जी की तरलता और सरलता में बहता ही चला गया। कुछ पंक्तियां सचमुच बात को नए अंदाज में कहती हैं। जैसे-<br /><br /> <br />तुम सामने थे फिर भी उसने न तुम्हें देखा<br /> वो राधा कन्हाई की यादों में रमी होगी<br /><br /><br />वो घर में नहीं रुकता बाज़ार में रहता है<br />दूकान कोई घर से ज़्यादा ही सजी होगी <br /><br />या कि<br />क्या ज़रुरत है चाँद को ज़मीं पे लाने की<br />इस ज़मीं को ही आसमान कर मुहब्बत का<br /><br />चाहिए जिनको उन्हें दे दो कई ताजमहल<br />मेरी चाहत है फ़क़त एक घर मुहब्बत का <br />एक बात जरूर कहना चाहूंगा कि दिल्ली वाली गज़ल में कथ्य के लिहाज से पाठक को कुछ नया नहीं मिल रहा। न ही कहने के अंदाज से । जो बातें उसमें हैं वे एक तरह का मुहावरा बन गई हैं। और हम उठते बैठते उन्हें कहीं न कहीं सुनते ही रहते हैं। तरल जी दिल्ली की कठिनता को सरलता में ढालें,ऐसी मांग मैं करना चाहूंगा। शुभकामनाएं।राजेश उत्साहीhttps://www.blogger.com/profile/15973091178517874144noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-954846169421193068.post-55759195129725046712010-07-17T06:32:02.343+05:002010-07-17T06:32:02.343+05:00वाह!! गजब धार है..हर शेर में.वाह!! गजब धार है..हर शेर में.Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-954846169421193068.post-58773174991903533672010-07-17T01:24:10.464+05:002010-07-17T01:24:10.464+05:00तरल जी बहुत सुंदर चुटीली और कटीली हैं आपकी कविताएँ...तरल जी बहुत सुंदर चुटीली और कटीली हैं आपकी कविताएँ ।Asha Joglekarhttps://www.blogger.com/profile/05351082141819705264noreply@blogger.com