tag:blogger.com,1999:blog-954846169421193068.post3049548609774743548..comments2023-07-07T15:27:40.554+05:00Comments on समकालीन सरोकार : फकत एक घर मुहब्बत का Subhash Raihttp://www.blogger.com/profile/15292076446759853216noreply@blogger.comBlogger6125tag:blogger.com,1999:blog-954846169421193068.post-47346999316484255472010-07-25T16:20:51.745+05:002010-07-25T16:20:51.745+05:00Rajesh Utsahee jee ke comments padhe hain.Gazal
si...Rajesh Utsahee jee ke comments padhe hain.Gazal<br />sikhaane mein main unkee madad awashya hee kartaa<br />agar mujhe unkaa email milaa hota.Ek do saal <br />pahle mujhe bahut saare patron ko delete karnaa<br />padtaa tha ,sambhav hai ki maine unkaa patra bhee<br />delete kar diyaa ho.Bahut saare patron ko delete<br />karnaa meree vivashta thee.Main gazal sambandhee<br />pustak likhne mein vyast thaa.<br /> Mujhse gazal sawaarne yaa seekhne waale <br />jaante hain ki maine unhen kabhee niraash nahin<br />kiyaa hai.Mujhe prasannta hotee hai kisee ko<br />kuchh sikhaane mein.<br /> Rajesh jee , aap ko gazal kahnee main <br />sikhaaongaa.Paanch - chhee maas kaa intezaar<br />kijiye.Abhee thodaa vyast hoon.<br /> Shubh kamnaaon ke saath.pran sharmahttps://www.blogger.com/profile/14658673113780007596noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-954846169421193068.post-83646479586570583442010-07-23T14:24:35.263+05:002010-07-23T14:24:35.263+05:00बहुत से रचनाकारों से परिचय अच्छा लगाबहुत से रचनाकारों से परिचय अच्छा लगासंगीता स्वरुप ( गीत )https://www.blogger.com/profile/18232011429396479154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-954846169421193068.post-1910226008763412422010-07-22T19:53:34.863+05:002010-07-22T19:53:34.863+05:00उत्साही जी का उत्साह प्रशंसनीय है। अच्छा लग रहा...उत्साही जी का उत्साह प्रशंसनीय है। अच्छा लग रहा है कि साखी में आने वाले शनिवार को राजेश उत्साही जी की गजलें प्रकाशित हो रही हैं। सार्थक संवाद की अपनी एक महत्ता होती है, इससे इंकार नहीं किया जा सकता है। यह संवाद न कोई वाद होता है और न विवाद, इससे बेहतर मार्ग प्रशस्त होते हैं। सिर्फ जिसकी रचनाओं पर विचार किया गया हो, उनके ही नहीं, अपितु चुपचाप जो पढ़-समझ रहे होते हैं, उनके भी। ऐसे आयोजन होते रहने चाहिए और सिर्फ गजल विधा में ही नहीं अपितु सभी विधाओं में। इससे बेहतरी के रास्ते खुलते हैं और नए-नए रचनाकार इससे जुड़ते हैं।अविनाश वाचस्पतिhttps://www.blogger.com/profile/05081322291051590431noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-954846169421193068.post-73280211346969341232010-07-22T08:21:06.219+05:002010-07-22T08:21:06.219+05:00लगभग साल भर पहले मेरी दो तथाकथित ग़ज़लें नुक्कड़ ...लगभग साल भर पहले मेरी दो तथाकथित ग़ज़लें नुक्कड़ में प्रकाशित हुईं थी। वहां प्राण शर्मा जी ने उन पर अपनी टिप्पणी की थी और कहा था उनमें ग़ज़ल की विशेषताएं नहीं हैं। मैने अपनी कमजोरियों को स्वीकार करते हुए अपनी वे दोनों रचनाएं तथा कुछ और प्राण जी को ईमेल से भेजीं थीं। आग्रह किया था कि कृपया अगर उदाहरण के साथ वे उनमें संशोधन कर पाएं तो मुझे आगे के लिए बहुत मार्गदर्शन मिलेगा। पर खेद है मुझे उनकी तरफ से कोई उत्तर नहीं मिला। संभव है वे व्यस्त रहे होंगे। नतीजा यह है कि मैं जहां हूं, वहीं हूं। क्योंकि और कोई प्राण शर्मा जी भी मुझे नहीं मिले। <br />यहां भी तरल जी की रचनाओं में अगर उदाहरण के साथ उन पंक्तियों को संशोधित रूप में दुबारा दिया जा सकता है तो हम जैसे लिखने वालों को बहुत कुछ सीखने को मिलेगा। <br />मेरा जानकार लोगों से आग्रह है कि कृपया जो भी इस तरह का मार्गदर्शन कर सकते हों आगे आएं। <br />अंत में यह विनम्र निवेदन भी करना चाहूंगा कि इसे शिकायती टिप्पणी न समझा जाए। न ही किसी का अनादर करने के लिए लिखी गई टिप्पणी समझी जाए। जिन्दगी ने सिखाया है कि जब लोहा गर्म हो तब चोट करनी चाहिए। और साखी पर हूं तो इससे चूक नहीं सकता। <br /><br />ुराजेश उत्साहीhttps://www.blogger.com/profile/15973091178517874144noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-954846169421193068.post-84790994650358023802010-07-22T08:08:13.710+05:002010-07-22T08:08:13.710+05:00बहुत बहुत आदर के साथ प्राण जी से भी और आपसे भी एक ...बहुत बहुत आदर के साथ प्राण जी से भी और आपसे भी एक आग्रह है। मेरा मानना है कि दुष्यंत कुमार के बाद हिन्दी में ग़ज़ल ने विधा के रूप में एक मुकाम पाया है। और नया लिखने वाले भी उसमें हाथ आजमाने लगते हैं। मुझे याद है कि मैने 30 साल पहले ग़ज़ले लिखीं थी। आज भी लिखता हूं। इन्हें आप तथाकथित कह सकते हैं क्योंकि ये ग़ज़ल के व्याकरण पर खरी नहीं उतरतीं। जब लोगों ने इस तरफ ध्यान खींचा। तो व्याकरण समझने की कोशिश की। किताबें भी खरीदीं पर कुछ पल्ले नहीं पढ़ा । विडम्बना यह है कि जो जानकार हैं वे भी और जो नहीं हैं वे भी तारीफों के पुल बांध देते हैं। निसंदेह वे तकनीक से ज्यादा विचार से प्रभावित होते हैं। मेरा भी मानना है कि तकनीक से ज्यादा विचार महत्वपूर्ण है। टिप्पणी जारी है.....राजेश उत्साहीhttps://www.blogger.com/profile/15973091178517874144noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-954846169421193068.post-52513454248200580002010-07-22T08:01:08.131+05:002010-07-22T08:01:08.131+05:00प्रिय सुभाष भाई एक बार फिर छा गए आप अपनी इस अदा से...प्रिय सुभाष भाई एक बार फिर छा गए आप अपनी इस अदा से। रचनाकारों के साथ टिप्पणिकारों को सचमुच एक दर्जा देने का यह अभियान जारी रहे। असल में जो इस तेवर से टिप्पणी कर रहे हैं वे समीक्षक की भूमिका में होते हैं। मेरा मानना है समीक्षक भी वही हो सकता है जिसमें दूसरों की रचनाओं में उसकी ताकत और कमजोरियों पर पर अगर उंगली रखने का माद्दा हो तो उसके विकल्प रखने की तैयारी भी हो। या कम से कम उस दिशा में मार्गदर्शन कर पाए। <br /><br />कबीर के शब्दों में जो घर फूंके आपना चले हमारे साथ।राजेश उत्साहीhttps://www.blogger.com/profile/15973091178517874144noreply@blogger.com