tag:blogger.com,1999:blog-954846169421193068.post8835885895676107985..comments2023-07-07T15:27:40.554+05:00Comments on समकालीन सरोकार : प्राण शर्मा की गजलें Subhash Raihttp://www.blogger.com/profile/15292076446759853216noreply@blogger.comBlogger68125tag:blogger.com,1999:blog-954846169421193068.post-36038285223083655712010-09-29T21:31:54.647+05:002010-09-29T21:31:54.647+05:00सलिल जी, प्रान सर ने आपको इत्यादि में यूं ही नहीं ...सलिल जी, प्रान सर ने आपको इत्यादि में यूं ही नहीं रखा है इसका खास कारण है। इसके पीछे एक किस्सा है। किस्सा भी असली है बस कवियों के नाम भूल गया हूंं। हुआ यूं कि एक बार दो वरिश्ठ कवि रेल से किसी कवि सम्मेलन में जा रहे थे। टेन किसी स्टेशन पर आधे घंटे के लिए रूकती थी, तो जैसे ही टेन रूकी दोनों उतर गये। एक बोले कि चलो पास में बाजार में घूम आते हैं पीने की तलब लग रही है। मैं यहां जानता हूं पास में ही दुकान है ले आते हैं। दोनों कविगण चल दिये। दुकान बड़ी मुश्किल से मिली। खैर समय कम था सो दोनों लोग बोतल लेकर कपड़ों में छुपाकर ले आये। टेन चली। अब समस्या सामने आयी कि वहां और लोगों के सामने कैसे पियें। तरकीब भिड़ाते हुए दोनों ने कविताएं पढ़नी ‘ाुरू कीं। आस-पास बैठे लोग आनन्दित होने लगे। थोड़ी देर बाद उनमें से एक कवि पास बैठे सज्जन से बोले भाई साहब ये सामने क्या लिखा है। सज्जन ने पढ़ा डिब्बे में लिखा था कि,‘ डिब्बे में बीड़ी आदि पीना सख्त मना है।‘ उन सज्जन ने सोचा कि कवि महोदय बीड़ी पीना चाहते है, सो बोले हां-हां क्यों नहीं आप बीड़ी पी लीजिए हमें कोई तकलीफ नहीं है। कवि महोदय बोले नहीं बीड़ी नहीं पीनी है हमें तो आदि आदि पीना है।<br /> तो सलिल सर ये आदि इत्यादि कोई छोटी-मोटी चीज नहीं है। आप बड़े बड़भागी हैं। बधाई हो। हा हासंजीव गौतमhttps://www.blogger.com/profile/00532701630756687682noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-954846169421193068.post-62862897701678040132010-09-29T21:12:02.986+05:002010-09-29T21:12:02.986+05:00आदरणीय बिहारी ब्लॉगर जी खूब कहा आपने। बात ही बात ...आदरणीय बिहारी ब्लॉगर जी खूब कहा आपने। बात ही बात में इस मत्ले पर एक ग़ज़ल बन गई और मैनें पोस्ट भी कर दी है। rastekeedhool.blogspot.com/2010/09/blog-post_29.html पर गुणीजनों की डॉंट-फ़टकार सुनने का इंतज़ार रहेगा।तिलक राज कपूरhttps://www.blogger.com/profile/03900942218081084081noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-954846169421193068.post-78910755052352450992010-09-29T19:38:27.501+05:002010-09-29T19:38:27.501+05:00प्राण साहब ने मुझे इत्यादि में सम्मिलित किया, पर उ...प्राण साहब ने मुझे इत्यादि में सम्मिलित किया, पर उनकी बात से इत्तेफाक रखते हुए, सर्वत साहब के समर्थन में,तिलक राज जी के शेर को आगे बढाते हुए, अपनी तुकबंदी रखना चाहता हूँः<br /><b>ब्लॉग-मरुथल में कहीं भी ढूँढ लो <br />“साखी” के अतिरिक्त, जल होता नहीं.</b>चला बिहारी ब्लॉगर बननेhttps://www.blogger.com/profile/05849469885059634620noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-954846169421193068.post-81638852950498480712010-09-29T13:58:18.118+05:002010-09-29T13:58:18.118+05:00एक टंकण त्रुटि रह गयी थी
रात हो या दिन, कभी सोता न...एक टंकण त्रुटि रह गयी थी<br />रात हो या दिन, कभी सोता नहीं<br />सूर्य का विश्राम पल होता नहीं।तिलक राज कपूरhttps://www.blogger.com/profile/03900942218081084081noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-954846169421193068.post-81080694015113017292010-09-29T13:54:23.893+05:002010-09-29T13:54:23.893+05:00सर्वत साहब ने खूब कहा सुभाष राय जी के लिये; उन्ही...सर्वत साहब ने खूब कहा सुभाष राय जी के लिये; उन्हीं की बात पकड़कर कहता हूँ कि:<br />रात हो या दिन, नहीं सोता कभी<br />सूर्य का विश्राम पल होता नहीं।तिलक राज कपूरhttps://www.blogger.com/profile/03900942218081084081noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-954846169421193068.post-85615813601766615142010-09-29T13:33:08.329+05:002010-09-29T13:33:08.329+05:00Main sabhee se anurodh karta hoon ki ve Subhash
je...Main sabhee se anurodh karta hoon ki ve Subhash<br />jee ke Sakhikabira blog ke is paar aayaa karen .<br />Hansee - hansee mein Sanjeev jee , Rajesh jee,<br />Tilak jee , Sarwat jee , Pankaj jee ,Gautam ji <br />ityadi n jaane kitnee gyaan kee baaten kah jaate hain ! Bachchan jee ne kya khoob likha hai -- Is paar priy tum ho madhu hai <br /> us paar n jaane kyaa hogaapran sharmahttps://www.blogger.com/profile/14658673113780007596noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-954846169421193068.post-52120017510053617412010-09-29T08:17:00.686+05:002010-09-29T08:17:00.686+05:00डाक्टर सुभाष राय के लिए यह सब बाएं हाथ का खेल है. ...डाक्टर सुभाष राय के लिए यह सब बाएं हाथ का खेल है. एक मुउद्दत से अखबार के दफतर में कापियां ही तो जांचते रहे हैं. प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया, दोनों के कुशल सम्पादक की भूमिका अदा कर रहे हैं. एक राज़ की बात बताऊं, यह रात को भी नहीं सोते.सर्वत एम०https://www.blogger.com/profile/15168187397740783566noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-954846169421193068.post-44751108805571203092010-09-28T20:07:21.687+05:002010-09-28T20:07:21.687+05:00और इस बार फिर हम सबने मिलकर सुभाष भाई का काम बढ़ा ...और इस बार फिर हम सबने मिलकर सुभाष भाई का काम बढ़ा दिया। वे एक कुशल कक्षा अध्यापक की तरह हम सबकी कॉपियां जांचकर उसे लाल-हरा कर ही लेंगे।.........ha..ha...vah bhai Rajesh vah.Dr Subhash Rainoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-954846169421193068.post-21879902466408171112010-09-28T19:26:24.462+05:002010-09-28T19:26:24.462+05:00@ सलिल भाई:
यानी खड्गसिह जी,
इस चर्चा में फिल्मी...@ सलिल भाई: <br />यानी खड्गसिह जी,<br />इस चर्चा में फिल्मी गीत भी आ गए हैं तो चलते चलते हम भी कह देते हैं- दिल जो भी कहेगा मानेंगे हम<br /> दुनिया में हमारा दिल ही तो है<br /><br />और बात संजीव भाई ने भी खूब कही बड़े होकर भी हम तितलियों के पीछे भागना नहीं भूले। सचमुच। और इस बार फिर हम सबने मिलकर सुभाष भाई का काम बढ़ा दिया। वे एक कुशल कक्षा अध्यापक की तरह हम सबकी कॉपियां जांचकर उसे लाल-हरा कर ही लेंगे। शुभकामनाएं।राजेश उत्साहीhttps://www.blogger.com/profile/15973091178517874144noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-954846169421193068.post-32400828786955344132010-09-28T18:41:26.251+05:002010-09-28T18:41:26.251+05:00@राजेश उत्साहीः
बाबा भारती जी,
आपकी बात कभी टाली ह...@राजेश उत्साहीः<br />बाबा भारती जी,<br />आपकी बात कभी टाली है भला...और असहमत होने का प्रश्न ही कहाँ है...बकौल राजेश रेड्डीः<br />दिल भी इक ज़िद पे अड़ा है किसी बच्चे की तरह<br />या तो सब कुछ ही इसे चाहिए या कुछ भी नहीं.<br />आप की बात मेरे लिए आदेश है...चला बिहारी ब्लॉगर बननेhttps://www.blogger.com/profile/05849469885059634620noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-954846169421193068.post-42426915988259572182010-09-28T18:35:45.157+05:002010-09-28T18:35:45.157+05:00इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.सम्वेदना के स्वरhttps://www.blogger.com/profile/12766553357942508996noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-954846169421193068.post-78453001443348275732010-09-28T17:52:43.882+05:002010-09-28T17:52:43.882+05:00अद्भुत आनन्द आ रहा है चर्चा में। बड़े होकर भी तितल...अद्भुत आनन्द आ रहा है चर्चा में। बड़े होकर भी तितलियां के पीछे भागने में कितना आनन्द है आज जाना। आदरणीय तिलकराज जी ने बहुत खूबसूरती से बात को सामने रखा है। <br />नजर आते हैं जो जैसे वो सब वैसे नहीं होते<br />जो फल पीले नहीं होते वो सब कच्चे नहीं होतेसंजीव गौतमhttps://www.blogger.com/profile/00532701630756687682noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-954846169421193068.post-44301319562378183132010-09-28T13:17:07.678+05:002010-09-28T13:17:07.678+05:00विद्वजनों की चर्चा में मेरा उतरना शायद उचित न लगे ...विद्वजनों की चर्चा में मेरा उतरना शायद उचित न लगे लेकिन मंच खुला है तो बात रखना ही ठीक रहेगा।<br />प्राण साहब की तितलियॉं बेचारी उलझ गयी लगती हैं। <br />प्राण साहब को जितना पढ़ा उसमें इनकी लेखन शैली में एक विशिष्टता पाई है- एक तो इनकी ग़ज़लों में वज़्न का पालन ऐसा रहता है जो पहली नज़र में कभी-कभी खटकता है लेकिन फिर जब ध्यान जाता है कि भाई एक परिपक्व उम्र के उस्ताद शाइर की ग़ज़ल है तो ग़ज़ल विधा में अनुमत्य तरीके से देखने पर उसका कारण भी समझ में आ जाता है और निवारण भी हो जाता है; दूसरे ये कि इनके अधिकॉंश शेर अपने आस-पास के अनुभवों से भरे होते हैं और आम बोल-चाल की सीधी-सादी भाषा से लिये गये होते हैं जिसके कारण प्रथमदृष्टया ग़ज़ल बहुत सीधी-सादी सी लगती है। यहॉं फिर वही होता है कि जब इस बात पर ध्यान जाता है कि भाई एक परिपक्व उस्ताद शाइर की ग़ज़ल है तो शेर में उतरकर समझने की इच्छा होती है। उस स्थिति में शाइर के एहसास का अनुभव होने पर आनंद आता है। यह तो मैनें पहले भी निवेदन किया है कि प्राण शर्मा जी की ग़ज़लों का मुख्य आधार परस्पर संवाद की स्थितियॉं रहती हैं जिसमें संवाद पारिवारिक सदस्य, मित्र, प्रकृति, गली के नुक्कड़ पर या घर में खेलते बच्चे किसी से भी हो सकता है। इस दृष्टि से अशोक रावत जी की टिप्पणी भी ग़ल़त नहीं लगती। इसी ब्लॉग पर रावत जी की एक अलग एहसास पर आधारित बेहतरीन ग़ज़लें हैं जिन्हें देखने से स्पष्ट है कि उनकी शैली अलग तेवर लिये है। स्वाभाविक है कि उस एहसास को जीने और व्यक्त करने वाले शाइर को प्राण शर्मा जी की अभिव्यक्ति में सादगी ही दिखेगी।<br />मुझे लगता है यहॉं समस्या कहन की शैली को लेकर है। मेरा निजि अनुभव यह रहा है कि साहित्यकार की रचना शैली के आधार में बहुत कुछ होता है लेकिन मुख्यत: सोच, संस्कार, संदर्भ और सरोकार खुलकर सामने आते हैं कहन में और इन्हें रूप देने में शब्द और शिल्प सामर्थ्य की महत्वपूर्ण भूमिका होती है (मेरा यह आशय कदापि नहीं कि प्रस्तुत रचनाकार अथवा चर्चा में सम्मिलित टिप्पणीकारों में से कोई इस विषय में कमज़ोर है)। यही शैली रचनाकार की समीक्षात्मक भूमिका का प्रमुख आधार बनती है। ऐसी स्थिति में रचना के प्रति विविध विचार होना ग़लत तो नहीं लगता।<br />एक बात जरूर कहूँगा कि चूँकि प्राण शर्मा जी ने ग़ज़ल विधा पर काफ़ी अध्ययन भी किया है और उसपर खुलकर चर्चा भी करते रहे हैं तो ग़ज़ल के शिल्प अथवा शब्द प्रयोग के संदर्भ में उनकी ग़ज़लों को देखते समय यह बात ध्यान में रखना आवश्यक है कि सब जानते हुए भी ऐसा किया गया है तो क्यों? यह अलग बात है कि किसी नये शाइर को यह सौभाग्य नहीं मिलता; सीखने के काल में यह सौभाग्य शायद विकास में बाधक भी होगा।तिलक राज कपूरhttps://www.blogger.com/profile/03900942218081084081noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-954846169421193068.post-38858026315326334272010-09-28T12:17:30.505+05:002010-09-28T12:17:30.505+05:00प्राण साहब को पढ़ना हमेशा सकून देता है .... आज तो ...प्राण साहब को पढ़ना हमेशा सकून देता है .... आज तो एक नही दो नही चार चार ग़ज़लें .... दिन बन गया हमारा ....<br />बहुत बहुत शुक्रिया ...दिगम्बर नासवाhttps://www.blogger.com/profile/11793607017463281505noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-954846169421193068.post-51277123235775595252010-09-28T09:00:07.142+05:002010-09-28T09:00:07.142+05:00सलिल भाई, आरपार होने के आपने बहुत से उदाहरण दे दिए...सलिल भाई, आरपार होने के आपने बहुत से उदाहरण दे दिए। उनसे कतई असहमति नहीं है। प्राण जी का जो प्रयोग है वह काव्य की दृष्टि से ही है। इसीलिए उनसे भी कहा कि इस पर कैफियत की कोई जरूरत ही नहीं। और आपकी टिप्पणी की आखिरी पंक्ति की बात करें तो तितलियां तो फूलों को घायल करने का काम करती ही हैं न।<br /><br />तो खड्गसिह जी, बाबा भारती की बात मान लीजिए। पर तर्कसम्मत हो तो। वरना अपना क्या है अपन तो कहते ही रहते है। <br /><br />जैसे कि... <br />अब आया गया हूं तो प्राण जी की टिप्पणी में एक और बात जो मुझे रात भर परेशान करती रही वह यह है कि उन्होंने अपने तीन शेरों के बारे में जो कैफियत दी वह उनके सोच के दायरे को सीमित कर देती है। मैंने अब तक यह सीखा है कि आपका कोई भी निजी अनुभव साहित्य में तभी काम का होता है जब वह सर्वव्यापी होने की क्षमता रखता हो। इस दृष्टि से इन शेरों में कही गई बात कमजोर पड़ रही है,इसलिए वह उखड़ रही है।राजेश उत्साहीhttps://www.blogger.com/profile/15973091178517874144noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-954846169421193068.post-64346648696511247262010-09-28T08:57:16.250+05:002010-09-28T08:57:16.250+05:00इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.राजेश उत्साहीhttps://www.blogger.com/profile/15973091178517874144noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-954846169421193068.post-80218612230229303942010-09-28T08:55:45.543+05:002010-09-28T08:55:45.543+05:00जारी....गाना मैंने आपके लिए नहीं प्राण जी के लिए द...जारी....गाना मैंने आपके लिए नहीं प्राण जी के लिए दिया है। क्यों कि गाने में एक जगह बादलों के पार आता है। तो बहुत संभव है उन्हें वह पंक्ति याद रही हो। और आपको आपत्ति नहीं होगी वह इस अर्थ में कहा कि यह बादलों के पार प्रयोग तो इतना प्रचलित है कि आप भी उसको लेकर सहज होंगे। <br />और सलिल भाई राय तो सबकी अपनी निजी ही होती है। मेरी भी है। कुछ लोग इत्तफाक रखते हैं कुछ नहीं। मैं तो अपनी बात तर्क के आधार पर ही रखता हूं। विमर्श वही लोग कर सकते हैं जो कुछ सोचते हैं,अलग नजरिए से सोचते हैं। सहमत होना या असहमत होना उसके बाद का चरण है। जारी...राजेश उत्साहीhttps://www.blogger.com/profile/15973091178517874144noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-954846169421193068.post-25699456189441726282010-09-28T08:54:15.329+05:002010-09-28T08:54:15.329+05:00@सलिल भाई
मैंने अपनी टिप्पणी आपकी टिप्पणी देखने के...@सलिल भाई<br />मैंने अपनी टिप्पणी आपकी टिप्पणी देखने के पहले ही लिख डाली थी। टिप्पणी लिखने में मुझे कुछ आधा घंटा तो लगा ही होगा। जब आपकी टिप्पणी देखी तब तक मैं उसे पोस्ट। करने की प्रक्रिया में था। पहले एक बार प्रयास किया तो नहीं गई। पहले सोचा आपकी टिप्पणी में असली बात आ ही गई है,रहने दूं। फिर लगा कि इतनी मेहनत की है और इसमें कुछ और बातें भी हैं और सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि यह मेरी राय है,इसलिए पोस्ट कर ही दो।राजेश उत्साहीhttps://www.blogger.com/profile/15973091178517874144noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-954846169421193068.post-75321490451271575982010-09-28T00:52:28.276+05:002010-09-28T00:52:28.276+05:00@ रजेश उत्साही जीः
सोने चला गया था, मगर दिमाग़ उलझा...@ रजेश उत्साही जीः<br />सोने चला गया था, मगर दिमाग़ उलझा था आपके जवाब में, सो उठकर आना पड़ा अपनी बात कहने के लिए… <br />उस गाने की पूरी लिरिक्स की ज़रूरत नहीं थी.. इस गीत को मैं अपनी हथेली की तरह पहचानता हूँ..उसपर बातें फिर कभी. फ़िलहाल, “बादलों के पार पर आपको कोई आपत्ति नहीं होगी” की बात समझ नहीं आई.. दरसल मैं पहले भी कह चुका हूँ कि यह मेरी ज़ाती राय है, क्योंकि मैंने कहीं ऐसी बात नहीं सुनी... मुझे यह लगता है कि आर पार का मतलब पैवस्त होने से है. और अंगरेज़ी में इसका मतलब जो मुझे मिला वो था इण्टरसेक्शन, जो पैवस्त होने जैसा है. जैसे तीर निशाने के आर पार होना. <br />कोई मेरे दिल से पूछे तेरे तीरेनीमकश को<br />वो ख़लिश कहाँ से होती जो जिगर के पार होता.<br />और यह तो आशिक़ों का लोगो बन गया था शेर, याद करें, याद आ जाएगा. दिल में बिंधा हुआ इश्क़ का तीर आधा आर आधा पार.. और ब्लैक एण्ड वाईट की याद हो तो एक और नाक सए गाया हुआ गाना याद दिला दूँः<br />कभी आर कभी पार लागा तीरे नज़र<br />पिया घायल किया रे तूने मोरा जिगर.<br />आर पार अगर हो गई तितलियाँ तो फूलों के घायल होने का ख़तरा है.चला बिहारी ब्लॉगर बननेhttps://www.blogger.com/profile/05849469885059634620noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-954846169421193068.post-60149546219223582722010-09-27T23:47:18.711+05:002010-09-27T23:47:18.711+05:00मुझे बेनामी के नाम से अपनी टिप्पणी डालनी पड़ी क्...मुझे बेनामी के नाम से अपनी टिप्पणी डालनी पड़ी क्योंकि कुछ समस्या हो रही है और नाम से टिप्पणी जा नहीं रही है। <br />अब यहां आकर देखता हूं कि जो मैंने अपनी टिप्पणी में कहा वही सलिल जी भी कहकर चले गए। प्राण जी माफ करें। आपके इस में आरपार को लेकर सलिल जी असहज थे और मैं सहज। शायद इसीलिए हम दोनों ही आपके सामने प्रस्तुत हो गए। <br />एक और समस्या आती है कि यहां टिप्पणी बाक्स में जब लम्बी टिप्पणियां लिखो तो वो पोस्ट नहीं होती हैं। बाहर से फाइल लाओ तो यहां उसमें अतिरिक्त अक्षर आ जाते हैं। इसीलिए मेरी टिप्पणी में गलतियां नजर आएंगी। कृपया सुधारकर पढ़ लें।राजेश उत्साहीhttps://www.blogger.com/profile/15973091178517874144noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-954846169421193068.post-28097508750905868132010-09-27T23:33:49.538+05:002010-09-27T23:33:49.538+05:00प्राण जी क्षमा करें। तितली वाली ग़ज़ल के एक शेर के...प्राण जी क्षमा करें। तितली वाली ग़ज़ल के एक शेर के सन्दर्भ में ‘आर पार’ पर आपने जो कैफियत दी है मुझे नहीं लगता कि उसकी आवश्य कता थी। मैंने अपनी पहली टिप्पणी में कहा था कि मुझे तो यह प्रयोग सहज लगा। पर यह कैफियत देने से बात उलझ गई है। आपने जिस फिल्मी गीत से प्रेरणा ली है । वह इस तरह है -<br /><br />Titli Udi Ud Jo Chali<br />Phool Ne Kaha<br />Aaja Mere Paas<br />Titli Kahe Main Chali Aakash<br /><br />आप देख सकते हैं कि इसमें पंक्ति है- तितली कहे मैं चली आकाश<br />न कि - तितली कहे मैं चली उस पार <br />हां आगे एक पंक्ति है- जाना है वहां मुझे बादलों के पार<br />पर बात शुरू हुई थी सलिल जी की टिप्पणी से। उन्होंने फूलों के आर-पार पर असहजता महसूस की थी। पर मेरी समझ है कि बादलों के पार पर तो उनको भी कोई समस्या नहीं होगी। <br />पूरा गीत इस तरह है-<br /><br />In Hai Janam Taare Ke Jo Door<br />Bhale Meri Manjil Kaise Jaaoon Bhool<br /><br />Jahan Nahin Bandhan, Na Koi Deewar<br />Jaana Hai Wahan Mujhe Badalon Ke Paar<br /><br />Titli Udi Ud Jo Chali<br />Phool Ne Kaha<br />Aaja Mere Paas<br />Titli Kahe Main Chali Aakash<br /><br />Phool Ne Kahaa Tera Jaana Hai Bekaar<br />Kaun Hai Vahan Jo Kare Tera Intezaar<br /><br />Boli Titli Donon Pankh Pasaar<br />Wahan Pe Milega Mera Rajkumar<br /><br />Titli Udi Ud Jo Chali<br />Phool Ne Kaha<br />Aaja Mere Paas<br />Titli Kahe Main Chali Aakash<br /><br />Titli Ne Poori Jab Kar Lee Udaan<br />Nayi Duniya Main Hui Nayi Pehchaan<br />Mila Use Sapanon Ka Rajkumar<br />Titli Ko Mil Gaya Mann Chaha Pyaar<br /><br />Titli Udi Ud Jo Chali<br />Phool Ne Kaha<br />Aaja Mere Paas<br />Titli Kahe Main Chali Aakash<br /><br />यह 1966 में बनी फिल्म सूरज से है। इसे लिखा है हसरत जयपुरी ने और गाया है शारदा ने। यह गीत हमें भी इसलिए याद रह गया है क्यों कि एक तो इसमें तितली की बात है दूसरे शारदा की आवाज ऐसी थी जैसे वे नाक से गा रही हों। <br /><br />तो प्राण जी इस गीत जो पंक्ति आई है वह है बादलों के पार। अगर सलिल भाई ने आपके इस शेर पर असहजता व्यतक्त की थी तो वह फूलों के पार जाने पर की थी। मेरी समझ से बादलों के पार जाने में उन्हेंी भी कोई समस्यार नहीं होगी। <br /><br />अब देखिए मंहगे तोहफे वाले शेर की कैफियत पर भी आप उलझ गए हैं। हमने माना कि आप प्रवासी हैं। पर सचमुच क्याश भारत आपके लिए परदेस हो गया है। कम से मैं तो इस शेर को भारत से बाहर जाकर भारत में लौटकर किसी परिचित से मिलने के संदर्भ में ही समझ रहा था।<br /> राजेश उत्साहीAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-954846169421193068.post-20049785510998086672010-09-27T23:23:59.575+05:002010-09-27T23:23:59.575+05:00प्राण साहब, एक बार पुनः आपके चरण स्पर्श करते हुए औ...प्राण साहब, एक बार पुनः आपके चरण स्पर्श करते हुए और कानों को हाथ लगाते हुए कुछ कहने की हिमाकत कर रहा हूँ..चुँकि इसमें मेरे उठाए हुए शब्दों की सफाई (फिर से माफ़ी, इस लफ्ज़ के लिए, वरना आपसे सफाई की उम्मीद मेरे लिए बाईसेशर्मिंदगी होगी) में आपने वे वाक़यात बयान किए हैं, लिहाजा मैं सफाई रखना चाहता हूँ:<br />तितली उड़ी वाला गीत यूँ है <br />“तितली उड़ी, उड़ जो चली/फूल ने कहा, आजा मेरे पास,/तितली कहे मैं चली आकास!”<br />ऐसा होता है फिल्मी गानों के साथ. कोई गाता था “बैठा दिया पलंग पे मुझे खाट से उठा के” (बैठा दिया फ़लक पर, मुझे ख़ाक से उठा के)<br />.<br />होशियारी वाली बात तो मैं समझ गया, दरसल जहाँ आपका शेर ख़त्म होता है मैंने वहाँ से एक नया मानी गढने की कोशिश की. और<b> तितली ऊड़ी</b> की तर्ज़ पर <b>न सीखी होशियारी </b>की बात कही. <br />.<br />महँगे तोहफे की बात पर तो चलिए इस बात का इत्मिनान हुआ कि जिनके लिए वो तोह्फा था उन्होंने भी मेरे ख़यालात की तर्जुमानी की. एक प्यार भरी गुज़ारिश यह पूछने पर कि क्या लाऊँ तुम्हारे लिए परदेस से आज भी दिल में मीठी सी चुभन पैदा करती है<br /><b>बता दूँ क्या लाना, तुम लौट के आ जाना</b><br />हमारी बेग़म होतीं तो कहतीं :<br /><b>ख़ामख़ाह ले आए इतने महँगे तोहफे आप क्यूँ<br />बस यही अच्छा नहीं पैसे उड़ाना आपका.</b>चला बिहारी ब्लॉगर बननेhttps://www.blogger.com/profile/05849469885059634620noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-954846169421193068.post-16980748918845926332010-09-27T20:43:04.676+05:002010-09-27T20:43:04.676+05:00तिलक राज कपूर ने सही कहा है कि " होशियार &quo...तिलक राज कपूर ने सही कहा है कि " होशियार " शब्द के अनेक अर्थ हैं - चतुर ,<br />चालाक , कुशल ,जागरूक , माहिर आदि . मैंने इस शब्द को " कुशल और बुद्धिमान के अर्थ में <br />लिया है अपने शेर में . शेर यूँ बना - एक बार मेरे घर में मेरी पत्नी की दो सहेलियाँ आयीं . बातचीत में <br />एक ने दूसरी को कहा - आपके दोनों बच्चे कितने ज़्यादा होशियार और पढ़े - लिखे निकले है ! <br />दूसरी ने जवाब में कहा - आपके बच्चे भी तो होशियार और पढ़े - लिखे हैं .<br /> बीस साल पहले मैं जयपुर गया था . पत्नी के लिए चार सौ रुपयों की जयपुरी साड़ी <br />खरीद ली . पत्नी को दी तो उसका मुँह फूल गया . दस साल पहले दिल्ली गया तो उसके लिए मँहगी<br />से मँहगी साड़ी खरीदी . पाकर वह खुश तो हुईं लेकिन कह उठीं - इतनी मँहगी साड़ी लाने की क्या जरूरत <br />थी ? मेरा यह शेर बन गया - <br /> क्यों न लाता मँहगे - मँहगे तोहफे मैं परदेस से <br /> वर्ना पड़ता देखना फिर मुँह फुलाना आपका <br /> इस शेर में ज़रा " फिर " शब्द " पर गौर सभी फरमाएँ . <br /> मैं सीधी - सादी भाषा में सीधे - सादे भावों को पिरोता हूँ . इसीलिये मेरे पसंद के कवि <br />दाग़ देहलवी , माखन लाल चतुर्वेदी , जिगर मोरादाबादी , हरिवंश राय बच्चन , सुभद्रा कुमारी चौहान ,<br />नागार्जुन , बशीर बद्र इत्यादि हैं <br /> एक बार फिर सब का धन्यवाद .Pran Sharmanoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-954846169421193068.post-90822257244744592972010-09-27T20:41:18.603+05:002010-09-27T20:41:18.603+05:00मैं अपनी ग़ज़लों पर सभी टिप्पणियों का आदर करता हूँ...मैं अपनी ग़ज़लों पर सभी टिप्पणियों का आदर करता हूँ . सभी गुणीजन मेरे लिए <br />माननीय हैं . मैं तो एक बच्चे की सीख का भी मान करता हूँ . मेरी ग़ज़लों में दो - <br />तीन ऐसे शब्द आयें हैं जो मेरे अनुभव पर आधारित हैं . कभी रघुपति सहाय फ़िराक <br />गोरखपुरी ने कहा था कि ग़ज़लों में प्रकृति गायब है . मेरे मन - मस्तिष्क में यह बात <br />बैठ गयी . मैंने कुछेक ग़ज़लें बदलियाँ , पंछी , मातृभूमि , तितलियाँ आदि पर कह दीं .<br />" तितलियाँ " ग़ज़ल के जन्म की बात करता हूँ . शैख्सपीयर के जन्मस्थान स्ट्रेट अपोन<br /> ऐवोन में एक तितली घर है . निहायत खूबसूरत . किस्म - किस्म की सैंकड़ों ही तितलियाँ <br />हैं उसमें . उनका फूलों के आसपास , बीच में और आर - पार उड़ना देखकर मुझे एक <br />फ़िल्मी गीत याद आ गया - <br /> तितली उडी <br /> उड़ जो चली <br /> फूल ने कहा <br /> आजा मेरे पास <br /> तितली कहे <br /> मैं चली उस पार <br /> घर आया तो मेरा एक शेर " फूलों के आर - पार " तैयार हो गया . jaree................Pran Sharmanoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-954846169421193068.post-86489242041615778622010-09-27T20:39:04.809+05:002010-09-27T20:39:04.809+05:00मैं अपनी ग़ज़लों पर सभी टिप्पणियों का आदर करता हूँ...मैं अपनी ग़ज़लों पर सभी टिप्पणियों का आदर करता हूँ . सभी गुणीजन मेरे लिए <br />माननीय हैं . मैं तो एक बच्चे की सीख का भी मान करता हूँ . मेरी ग़ज़लों में दो - <br />तीन ऐसे शब्द आयें हैं जो मेरे अनुभव पर आधारित हैं . कभी रघुपति सहाय फ़िराक <br />गोरखपुरी ने कहा था कि ग़ज़लों में प्रकृति गायब है . मेरे मन - मस्तिष्क में यह बात <br />बैठ गयी . मैंने कुछेक ग़ज़लें बदलियाँ , पंछी , मातृभूमि , तितलियाँ आदि पर कह दीं .<br />" तितलियाँ " ग़ज़ल के जन्म की बात करता हूँ . शैख्सपीयर के जन्मस्थान स्ट्रेट अपोन<br /> ऐवोन में एक तितली घर है . निहायत खूबसूरत . किस्म - किस्म की सैंकड़ों ही तितलियाँ <br />हैं उसमें . उनका फूलों के आसपास , बीच में और आर - पार उड़ना देखकर मुझे एक <br />फ़िल्मी गीत याद आ गया - <br /> तितली उडी <br /> उड़ जो चली <br /> फूल ने कहा <br /> आजा मेरे पास <br /> तितली कहे <br /> मैं चली उस पार <br /> घर आया तो मेरा एक शेर " फूलों के आर - पार " तैयार हो गया .<br /> तिलक राज कपूर ने सही कहा है कि " होशियार " शब्द के अनेक अर्थ हैं - चतुर ,<br />चालाक , कुशल ,जागरूक , माहिर आदि . मैंने इस शब्द को " कुशल और बुद्धिमान के अर्थ में <br />लिया है अपने शेर में . शेर यूँ बना - एक बार मेरे घर में मेरी पत्नी की दो सहेलियाँ आयीं . बातचीत में <br />एक ने दूसरी को कहा - आपके दोनों बच्चे कितने ज़्यादा होशियार और पढ़े - लिखे निकले है ! <br />दूसरी ने जवाब में कहा - आपके बच्चे भी तो होशियार और पढ़े - लिखे हैं .<br /> बीस साल पहले मैं जयपुर गया था . पत्नी के लिए चार सौ रुपयों की जयपुरी साड़ी <br />खरीद ली . पत्नी को दी तो उसका मुँह फूल गया . दस साल पहले दिल्ली गया तो उसके लिए मँहगी<br />से मँहगी साड़ी खरीदी . पाकर वह खुश तो हुईं लेकिन कह उठीं - इतनी मँहगी साड़ी लाने की क्या जरूरत <br />थी ? मेरा यह शेर बन गया - <br /> क्यों न लाता मँहगे - मँहगे तोहफे मैं परदेस से <br /> वर्ना पड़ता देखना फिर मुँह फुलाना आपका <br /> इस शेर में ज़रा " फिर " शब्द " पर गौर सभी फरमाएँ . <br /> मैं सीधी - सादी भाषा में सीधे - सादे भावों को पिरोता हूँ . इसीलिये मेरे पसंद के कवि <br />दाग़ देहलवी , माखन लाल चतुर्वेदी , जिगर मोरादाबादी , हरिवंश राय बच्चन , सुभद्रा कुमारी चौहान ,<br />नागार्जुन , बशीर बद्र इत्यादि हैं <br /> एक बार फिर सब का धन्यवाद .Pran Sharmanoreply@blogger.com