tag:blogger.com,1999:blog-954846169421193068.post2276584986856099368..comments2023-07-07T15:27:40.554+05:00Comments on समकालीन सरोकार : अरुणा राय की कविताएं Subhash Raihttp://www.blogger.com/profile/15292076446759853216noreply@blogger.comBlogger15125tag:blogger.com,1999:blog-954846169421193068.post-90349219167106006422010-08-02T22:24:41.117+05:002010-08-02T22:24:41.117+05:00अरुणा जी कि कविताये बहुत गंभीर है .एक एक शब्द एक क...अरुणा जी कि कविताये बहुत गंभीर है .एक एक शब्द एक कविता बन गया है .ऐसा लगता है कि शब्द है ,विधा है ,सृजनत्माकता है और कुछ गहरे है जो इन सब के कारण कविता में तब्दील हो गया है .अरुणा जी जो कहना चाहती थी कहने में सफल रही है .इनकी कविताये दिल को छूने वाली है .खास तौर पर जो दिलवाले है उन सब को तों अपनी ही कहानी लगेगी .अरुणजी का लेखन बहुत पूर्णता लिए हुए है ,बधाई .डॉ० चन्द्र प्रकाश राय https://www.blogger.com/profile/08175631494535002443noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-954846169421193068.post-72807771913433982172010-08-02T20:28:07.114+05:002010-08-02T20:28:07.114+05:00अरुणा जी की रचनायें ह्रदय से लिखी गयी हैं .....इसल...अरुणा जी की रचनायें ह्रदय से लिखी गयी हैं .....इसलिए पाठक को बरबस खींच लेतीं हैं ....बधाई अरुणा जी .....!!हरकीरत ' हीर'https://www.blogger.com/profile/09462263786489609976noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-954846169421193068.post-63762031384677791972010-08-02T11:03:10.966+05:002010-08-02T11:03:10.966+05:00अरुणा जी की कविताओं में मानवीय संवेदनाओं की सहज अभ...अरुणा जी की कविताओं में मानवीय संवेदनाओं की सहज अभिव्यक्ति हुई है.<br />मदन मोहन 'अरविन्द'Madan Mohan 'Arvind'https://www.blogger.com/profile/01174037323908245493noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-954846169421193068.post-53275432279178193972010-08-01T15:34:35.422+05:002010-08-01T15:34:35.422+05:00अरूणा जी की ताजा गन्ध से भरी कविताएं पढ़ने को मिली...अरूणा जी की ताजा गन्ध से भरी कविताएं पढ़ने को मिलीं। कविताओं का स्वर हालांकि वैयक्तिक ज्यादा है लेकिन यह भी सच है कि यह भी हमारे समय का एक सच है, ‘संवेदनहीन कड़ुवा सच‘ं। कविताओं में कुछ भाषिक प्रयोग के अंश सुखद रूप से चैंकाते हैं। अचानक हड़बड़ाहट या घबराहट में आ जाने वाले पसीने के लिए किया गया प्रयोग ‘शिराओं का रक्त उलीचने लगता है नमक और जल‘ और इस प्रयोग की चित्रात्मकता तथा ध्वन्यात्मकता देखिए ‘कानों के लिए तो सस्वर पाठ करना होगा आंसुओं का..‘ और ये, ‘तभी दूर आकाश में यूकेलिप्टस हिले....‘ वाह बहुत खूब। चित्रात्मक भाषा कवि की सबसे बड़ी पूंजी है और इसमें अरूणा जी सौभाग्यशालिनी हैं। बहुत कुछ अच्छा दिखा इन कविताओं में लेकिन ये एक बारीक विभाजन रेखा का अतिक्रमण करतीं भी दिखीं। गद्य और पद्य के बीच का। छन्दमुक्त कविताओं के सृजन में एक बड़ा खतरा मुझे यह दिखाई पड़ता है कि यदि आप भाषिक रूप से सतर्क नहीं हैं तो कविता के गद्य हो जाने का खतरा उत्पन्न हो जाता है। छन्द मुक्त और गद्य के बीच बहुत स्पष्ट अन्तर नहीं है। अरूणा जी की पहली कविता के पहले खण्ड में यह विभाजक रेखा का अतिक्रमण बार-बार दीखता है।संजीव गौतमhttps://www.blogger.com/profile/00532701630756687682noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-954846169421193068.post-85650491370201598572010-08-01T02:32:40.374+05:002010-08-01T02:32:40.374+05:00अरुणा के अल्हड़ मन की सहज अभिव्यक्तियाँ सामने आयीं...अरुणा के अल्हड़ मन की सहज अभिव्यक्तियाँ सामने आयीं। जैसे कविता के विशाल उपवन में कोई ताज़ा कली अचानक-अनायास खिलकर सुगंध को शब्दों की बयार में घोलकर पूरे उपवन को अपनी ताज़गी का अहसास करा रही हो। कविता में जब सारे मुद्दे चुक जाते हैं तब प्रेम शाश्वत मुद्दे के रूप में बार-बार हमारे सामने एक अक्षुन्य पात्र की तरह आता है और हर बार नया रूप लेकर। ऐसा ही नया रूप दिखाई दिया है इस नवोदित परन्तु पर्याप्त रूप से परिपक्व कवयित्री की इन कविताओं में। अरुणा ने प्रेम को सशक्त माध्यम बनाकर आज के समय की नब्ज़ पर अपनी ऊँगली रखी है। मानवीय व्यवहार की वर्तमान संवेदनशून्यता को अभिव्यक्ति तो उनकी तीनों कवितायें दे रहीं हैं लेकिन दूसरी कविता के अंतिम छोर ने तो ह्रदय को झकझोर कर रख दिया। मुझे नहीं मालूम कि कवयित्री ने इन पंक्तियों को किस मंतव्य से लिखा है लेकिन पाठक/समालोचक की दृष्टि से मुझे इनमें कर्णप्रियता लाने के लिए कविता में अपने आंसुओं, अपनी वेदना, को घोलने की कवि की विवशता प्रतिबिंबित होती दिख रही है। कि जब तक कवि नाम का प्राणी रो-रोकर गाये नहीं या गा-गाकर रोये नहीं, सुनने वाले को मज़ा ही नहीं आता। मौन भाषा में व्यक्त आँसूं देखने के लिए जिन आँखों की दरकार है वे तो प्रायः नदारद ही हैं। एक पाकिस्तानी कवि की दो पंक्तियाँ याद आ रहीं हैं :<br />इक वो दुनियां है जो चीखों को गीत समझती है<br />इक वो दुनियां है जो गीतों को चीख समझती है<br />चीखों को गीत समझने वाले लोग तो दुनियां में भरे पड़े हैं हम कवियों का दर्द तो यह है कि गीतों को चीख समझने वाले लोग कहाँ से आयें।<br /> aansoo to aankhon ki bhasha hain <br /> aankh vaalon ke liye hain <br /> kaanon ke liye to <br /> sasvar paath karana hoga <br /> aasuon ka <br />Aruna ko meri badhai.aage bhi aise prayas karatin rahengin aisi meri kaamanaa hai.डॉ.त्रिमोहन तरलhttps://www.blogger.com/profile/05559939505612385680noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-954846169421193068.post-76616518597651196112010-07-31T22:49:50.570+05:002010-07-31T22:49:50.570+05:00[1] मोबाइल प्यार
....... उसके आजू
बाजू
लिख दे र...[1] मोबाइल प्यार <br />....... उसके आजू <br />बाजू <br />लिख दे रहे हैं पवित्र <br />मासूम निर्दोष <br />और यह सोचते हैं कि ये <br />उसे ज़ाहिर कर देंगे या <br />ढंक लेंगे <br />.................................<br />@ आपने 'आजू' और 'बाजू' को आजू-बाजू लगाकर अपने मनोभावों की प्रस्तुति शब्दों की बुनावट से भी करने की कोशिश की है. प्यार के इर्द-गिर्द पवित्र, मासूम, निर्दोष विशेषणों को सजाना प्यार के प्रति दृष्टिकोणों को निर्मित करना है. हम या तो अपने प्रेम की कलुषता को छिपाने के लिए इन शब्दों को ओढ़ते हैं, या फिर इन शब्दों को बिछाकर प्यार को साधना करते दर्शाते हैं. सहसा मोबाइल का बज जाना और अचानक प्यार का प्रदर्शित हो जाना, जिस तरह प्रकम्प को जन्म देता है और जिस तरह अवहित्थ भाव को जन्माता है, वह समरूप-सा लगता है. <br />कमाल की भाव-कविता. <br /> <br />[२] सस्वर पाठ<br />शिराओं का रक्त <br />उलीचने लगा <br />नमक और जल ......................<br /> <br />@ सात्विक भावों को विच्छेद कर प्रकट करने की शैली वक्रोक्ति पसंद करने वालों को अच्छी लगेगी. पसीने (स्वेद) के लिए 'नमक + जल' / स्वरभंग के लिए 'हकलाना + झेंप' / इसी तरह अश्रु के लिए आप कोई फार्मूला देते नहीं दिख रहे. शायद उसका फार्मूला वाष्पित हो गया हो, इस कारण दिखाई नहीं दे रहा. वैसे अश्रु का फार्मूला है 'घनीभूत पीड़ा + स्मृति'. कविता में बेशक यह दर्शाया नहीं गया लेकिन यह भाव उसमें निहित है. <br /> <br />आंसू तो आंखों की भाषा है <br />आंखवालों के लिए है <br />कानों के लिए तो <br />सस्वर पाठ करना होगा <br />आंसुओं का .......................<br /> <br />@ आँखवालों के लिए 'अश्रु' आँखों की भाषा है लेकिन सिसकी कानवालों के लिए है. जब पीड़ा चरम पर हो तो सिसकी भी न जाने कहाँ जा छिपती है. <br />स्तब्ध कर देने वाली भाव-प्रस्तुति. <br /> <br />[3] फिर छाने लगी धुंध <br /><br />फिर बैठ गई कुर्सी पर <br />तभी दूर आकाश में <br />यूकेलिप्टस हिले <br />कि जाने कहाँ से फिर <br />छाने लगी धुंध <br />और छाती चली गई... <br />@ गद्य में स्वाद लिया था अभी तक रिपोर्ताज विधा का. कविता में भी चखा दिया आपने. <br />मन को तनावों से खोलकर भाव-प्रकृति में टहल कराने को ले जाती कविता.Pratul Vasisthahttp://darshanprashan-pratul.blogspot.com/noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-954846169421193068.post-36545678820681369032010-07-31T17:45:43.285+05:002010-07-31T17:45:43.285+05:00मेरे ख्याल से राजेश जी ने इतनी खूबसूरत समीक्षा कर ...मेरे ख्याल से राजेश जी ने इतनी खूबसूरत समीक्षा कर दी है कि कहने को कुछ बचा ही नही…………………बेहतरीन भावों से लबरेज़्।vandana guptahttps://www.blogger.com/profile/00019337362157598975noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-954846169421193068.post-45962945641095576112010-07-31T17:43:27.192+05:002010-07-31T17:43:27.192+05:00Man ke bhavon ka sundar chitran ..
Manviya man ke ...Man ke bhavon ka sundar chitran ..<br />Manviya man ke bhawanon ko bakhubi bandha hai ...<br />Haardik shubhkamnayneकविता रावत https://www.blogger.com/profile/17910538120058683581noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-954846169421193068.post-19777476643261715882010-07-31T14:36:16.411+05:002010-07-31T14:36:16.411+05:00ARUNA RAAY KEE KAVITAAON MEIN SAAF - SUTHREE
BHASH...ARUNA RAAY KEE KAVITAAON MEIN SAAF - SUTHREE<br />BHASHA HAI AUR SAAF - SUTHRE BHAAV HAIN.UNMEIN<br />EK ACHCHHAA KAVI CHHUPA HUA HAI.VE BAHUT AAGE<br />JAAYENGEE, ISKEE POOREE SAMBHAVNA HAI.pran sharmahttps://www.blogger.com/profile/14658673113780007596noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-954846169421193068.post-82340627771668242782010-07-31T13:45:07.784+05:002010-07-31T13:45:07.784+05:00अरुणा राय के बारे में जानकर अच्छा लगा...सुन्दर पो...अरुणा राय के बारे में जानकर अच्छा लगा...सुन्दर पोस्ट. <br />'शब्द-शिखर' पर आपका स्वागत है.Akanksha Yadavhttps://www.blogger.com/profile/10606407864354423112noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-954846169421193068.post-6500894670551988042010-07-31T11:50:23.142+05:002010-07-31T11:50:23.142+05:001. मोबाइल से प्यार
उससे खींचे चित्रों से प्यार
स...1. मोबाइल से प्यार<br />उससे खींचे चित्रों से प्यार<br />संदेशों से प्यार<br />चाहे वे भेजे गए हों<br />चाहे वे पाए गए हों<br />चाहे खो गए हों<br />पर प्यार सबसे है<br /><br />हवा, पानी, धूप<br />जैसा हो गया है मोबाइल<br />ऐसा लगता है<br />प्रकृति में ही ढला था<br />अब सामने आया है<br />इसने सबको लुभाया है<br /><br />इसका प्यार अलग भी है<br />इसे रिचार्जिंग चाहिए<br />ऊष्मा बैटरी की चाहिए<br />बिना इसके <br />न प्यार चलता है<br />न प्यार पलता है<br />इसके झांसे में आ जाए<br />वो कभी न संभलता है<br /><br />पर यह जीवन है<br />क्यों जीवन ऐसे ही चलता है। <br /><br /><br />2. आंसुओं का सस्वर पाठ<br />बरसात है<br />उसका साथ है<br />आप उसे किस रूप में<br />स्वीकारते हैं<br />बादल बनते हैं खुद <br />या बन जाते हैं टब<br />जिसमें भर जाए पानी<br />आंखों का सारा पानी<br />जो आंसू बन बहने लगता है। <br /><br /><br />3. आकाश में यूकेलिप्टस<br />यू के से लिपटना नहीं होगा<br />जरूर कोई पौधा ही होगा<br />नहीं जानता अर्थ<br />इसलिए अनर्थ गढ़ा है<br />शब्दकोश में तलाशूं<br />इस पचड़े में नहीं पड़ता<br />मन से पढ़ता हूं<br />जिन शब्दों को<br />मैं समझ नहीं पाता<br />याद फिर भी<br />मुझे रह नहीं पाता<br />बरसात हो और<br />ले गया होऊं छाता।<br /><br /><br />अरुणा राय की कविताओं पर राय स्वरूप हैं मेरी पंक्तियां। रचना जो रचने के लिए बाध्य कर दे, रचना की ताकत को उकेरती है।अविनाश वाचस्पतिhttps://www.blogger.com/profile/05081322291051590431noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-954846169421193068.post-51677425719205634492010-07-31T01:15:04.335+05:002010-07-31T01:15:04.335+05:00मन के भवों को बहुत सहजता से कहा है....आधुनिक प्रेम...मन के भवों को बहुत सहजता से कहा है....आधुनिक प्रेम का चित्र खींचा है....और मन की संवेदनाओं को शब्दों में खूबसूरती से ढाला हैसंगीता स्वरुप ( गीत )https://www.blogger.com/profile/18232011429396479154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-954846169421193068.post-15642173508133377842010-07-30T22:37:10.509+05:002010-07-30T22:37:10.509+05:00kya bat hai, jis sangida andaj me inhone apni bat...kya bat hai, jis sangida andaj me inhone apni bat rakhi dil ko chhu gayi rachna enki..........Mithilesh dubeyhttps://www.blogger.com/profile/14946039933092627903noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-954846169421193068.post-64160975630495356682010-07-30T22:27:06.038+05:002010-07-30T22:27:06.038+05:00अरूणा की कविता में एक तरह की अराजकता है। शब्दों क...अरूणा की कविता में एक तरह की अराजकता है। शब्दों की अराजकता, विचारों की अराजकता। अराजकता ऐसी है जो आपको अचंभित करती है,परेशान भी और मुग्ध भी। आज का युवा मन प्रेम को किस तरह महसूस करता है वह अरूणा की पहली कविता में बहुत अनायास मगर सहज रूप से उभर आया है। मोबाइल नामक यंत्र हमारी संवेदनाओं को किस हद तक भौंथरा बना सकता है यह उनकी दूसरी कविता में है। तीसरी कविता में संभवत: अनजाने ही यूकिलिप्टस का जिक्र आ गया है। संयोग ही है कि यूकिलिप्टस संस्कृति ने जमीन का पानी तो सुखाया ही है,हमारी आंखों का पानी भी अब सूखता चला है। यह भी क्या संयोग ही है कि पिछले हफ्ते इसी जगह प्रस्तुत मेरी एक कविता में भी इसी विडम्बना का जिक्र था। सचमुच अरूणा से अपेक्षाएं और बढ़ गई हैं। शुभकामना है कि वे अपने कविकर्म में इसी तरह व्यस्त रहें।राजेश उत्साहीhttps://www.blogger.com/profile/15973091178517874144noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-954846169421193068.post-91154767462621951072010-07-30T22:07:42.624+05:002010-07-30T22:07:42.624+05:00बहुत सुंदर अभिव्यक्तियाँ मन के उदगारों को कोमलता स...बहुत सुंदर अभिव्यक्तियाँ मन के उदगारों को कोमलता से कुछ शब्द दे दिए हैं.अनामिका की सदायें ......https://www.blogger.com/profile/08628292381461467192noreply@blogger.com