tag:blogger.com,1999:blog-954846169421193068.post2173892459334909238..comments2023-07-07T15:27:40.554+05:00Comments on समकालीन सरोकार : कहन की बारीकियाँ जरूरी Subhash Raihttp://www.blogger.com/profile/15292076446759853216noreply@blogger.comBlogger3125tag:blogger.com,1999:blog-954846169421193068.post-4391729100286631062012-08-18T00:07:52.988+05:002012-08-18T00:07:52.988+05:00खरगोश का संगीत राग रागेश्री पर आधारित है जो कि
खम...खरगोश का संगीत राग रागेश्री पर आधारित है जो कि <br />खमाज थाट का सांध्यकालीन राग है, स्वरों में कोमल निशाद और बाकी स्वर शुद्ध लगते हैं,<br />पंचम इसमें वर्जित है, पर हमने इसमें अंत में पंचम का प्रयोग भी किया है,<br />जिससे इसमें राग बागेश्री भी झलकता है.<br /><br />..<br /><br />हमारी फिल्म का संगीत वेद नायेर <br />ने दिया है... वेद जी को अपने <br />संगीत कि प्रेरणा जंगल में चिड़ियों कि चहचाहट से मिलती है.<br /><br />..<br /><i>Check out my web site</i> ... <b><a href="http://www.youtube.com/watch?v=FbfbqR0ihfA" rel="nofollow">हिंदी</a></b>Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-954846169421193068.post-14709648324254098362012-08-16T17:52:37.018+05:002012-08-16T17:52:37.018+05:00ग़ज़ल का नाम आते ही जो सबसे पहली बात मेरे मस्तिष्क...ग़ज़ल का नाम आते ही जो सबसे पहली बात मेरे मस्तिष्क में आती है वह है झमेला, आप कितनी भी अच्छी ग़ज़ल कहिये, अपना खून निचोड़ दीजिए, समीक्षक के विचार से ग़ज़ल में कोई न कोई कमी अवश्य रह जायेगी, विद्वानों की दृष्टि ऐसी कमियों पर चाहे-अनचाहे पड़ ही जाती है, बात कितनी दूर तक जा सकती है स्वयं रचनाकार को भी आभास नहीं होता, शब्दों के प्रयोग से चल कर भाषा के मुहावरे तक ग़ज़ल लिखने वाले को सिवाय असमंजस के कुछ नहीं मिलता. लिखने वाला सिवाय विनम्रता से समालोचक की बात को स्वीकार करने के और कुछ कहने की स्थिति में कभी नहीं होता. क्या ऐसा नहीं हो सकता की हमारी दृष्टि ' दोषान्वेषण' से हट कर 'गुण ग्राहकता' का रुख कर ले, रचनाकार की रचना में यदि कहीं कविता है तो उस पर भी हमारा ध्यान जाय, यदि ऐसा नहीं होता है तो यह न केवल ग़ज़ल की प्रासंगिकता अपितु कविता के उद्देश्यों पर भी एक प्रकार से कुठाराघात जैसा होगा. मुझे यह निवेदन इस लिए प्रासंगिक लगा कि जब-जब ग़ज़ल की बात होती है तब-तब ग़ज़ल में इतने जबरदस्त तरीके से कमियां खोजी जाती हैं कि लिखने वाला बस पहली ही बार में तौबा कर ले. क्या हम बदलना चाहेंगे.Madan Mohan 'Arvind'https://www.blogger.com/profile/01174037323908245493noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-954846169421193068.post-77869184805702785732012-08-16T12:19:17.812+05:002012-08-16T12:19:17.812+05:00अशोक रावत जी और फिर तिलक राज जी ... दोनों ने ही अप...अशोक रावत जी और फिर तिलक राज जी ... दोनों ने ही अपने अपने अंदाज़ से अपनी बात को रक्खा है और दोनों बातें ही अपनी अपनी जगह सही हैं ... चर्चा की ये स्वस्थ परंपरा स्वागत योग्य है .. दिगम्बर नासवाhttps://www.blogger.com/profile/11793607017463281505noreply@blogger.com