शनिवार, 24 जुलाई 2010

राजेश उत्साही की कविताएं

राजेश उत्साही लम्बे समय से रचना कर्म से जुड़े हुए हैं। उन्होंने मप्र की अग्रणी शैक्षिक संस्था एकलव्य में 1982 से 2008 तक कार्य किया। संस्‍था की बाल विज्ञान पत्रिका चकमक का 17 साल तक संपादन किया। संस्‍था की अन्‍य पत्रिकाओं में संपादन तथा प्रबंधन सहयोग के अलावा एकलव्‍य के प्रकाशन कार्यक्रम में भी उनका योगदान रहा। मप्र शिक्षा विभाग की पत्रिका गुल्‍लक तथा पलाश का संपादन भी सम्हाला। नालंदा, रुमटूरीड तथा मप्रशिक्षा विभाग के लिए बच्‍चों के लिए साहित्‍य निर्माण कार्यशालाओं में स्रोतव्‍यक्ति के रूप में जिम्मेदारी निभायी। कविताएं, कहानी, व्‍यंग्‍य लेखन खासकर बच्‍चों के लिए साहित्‍य निर्माण, संपादन तथा समीक्षा में उनकी गहरी रुचि है। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में उनकी रचनाएं प्रकाशित होती रही हैं। फिलहाल आजीविका के सिलसिले में बंगलौर में हैं। यहां उनकी चार कविताएं प्रस्तुत हैं.... 


पानी
_________
पानी
अब कहीं नहीं है

पानी जो हम पीते थे
पानी जो हम जीते थे
पानी
मीठा पानी
पानी का मीठापन
अब नहीं है

न पानी रहा
न पानीदार लोग
पानी न आंखों में है
न चेहरे पर

पानी
उतर गया है
जमीन में नीचे
बहुत नीचे
इतना जितना कि
आदमी अपनी आदमीयत से।

विलोम अर्थ
वो
दुश्म
नहीं हैं मेरे
हां, मैं उनका दुश्मन हूं
चूंकि
अपना दोस्त कहा था उन्हें 
इसलिए मैं
उनका दुश्मन हुआ
क्योंकि 
उनके शब्द कोश में
मेरे हर शब्द के लिए एक विलोम अर्थ है
मेरे हर तर्क के लिए एक विलोम तर्क है
जैसे
मैं सूखा कहूं तो वे पानी कहेंगे
मैं दिन कहूं तो वे रात कहेंगे
रखूं अगर हल तो उलझन कहेंगे
शायद
अपना अस्तित्व बनाए
रखने के लिए
यह जरूरी है
उनकी अपनी रणनीति में

आश्चर्य
कि मेरे शब्दकोश में
दोस्त का अर्थ
अब तक वही है।

 इच्छाएं
1. 
चुक
जाने के भय से
अभिव्यक्ति के खतरे
उठाने से बचता रहा
यह अलग बात है कि
व्यक्त करने को कुछ भी नहीं है

2. 
अचोटिल रहे शरीर, इसलिए
दूर रहा छोटी-मोटी लड़ाइयों से
फिर भी
बचा नहीं पाया
सुई की नोक भर जगह
वार झेलने के लिए
हृदय पर

3. 
शब्दों
के खेल में बचाकर रखे थे
ढाई आखर
बारी आने तक
असली अर्थ खो चुके थे वे

4 . 
इच्छाएं
अनंत हैं, रहेंगी
ताउम्र अधूरी
फिर भी कुछ आदिम इच्छाएं
बची हैं
अंत के लिए। 


कल रात
कल रात
अपना कटा हुआ सिर
लिए घूमता रहा मैं
सड़क पर आवारा
कोई
नहीं था
जो करता शिनाख्त

देखा
जिसने भी
वह अपरिचय
के भाव से भर उठा
इस तरह
जैसे वर्षों से नहीं मिला
मुझसा कोई

पहचानने
से इंकार कर दिया
दोस्तों ने
रीझते थे
जो बातों पर मेरी
हमनिवाला हमप्याला थे

नहीं दौड़ा
उनकी नसों में भी खून
जो देखकर भर उठते थे
हिकारत से मुझे
वे
रहे
सहज ही
नजदीकियों से मेरी जो
हो उठते थे परेशान

चमक
उनकी आंखों में भी
नहीं दिखी
खिल उठती थीं बांछें जिनकी
मुझे देखकर
यहां
तक कि
भावशून्य रहा
चेहरा उनका, लबों पर
नहीं हुई जुंबिश
जिन पर थिरकती थीं
तितलियां मुस्कान की
मेरे होने भर के अहसास से
अपना
कटा हुआ सिर
लिए घूमता रहा मैं
सड़क पर बदहवास
कल रात

कहीं
कोई
नहीं था जो करता शिनाख्त
--------------------------------- 

सम्‍पर्क : मोबाइल  09611027788,
email:  utsahi@gmail.com
ब्‍लाग   
http://utsahi.blogspot.com गुल्‍लक  
http://apnigullak.blogspot.com यायावरी
http://gullakapni.blogspot.com गुलमोहर







40 टिप्‍पणियां:

  1. अद्भुत रचनायें राजेश भाई की..



    कल रात
    अपना कटा हुआ सिर
    लिए घूमता रहा मैं
    सड़क पर आवारा
    कोई
    नहीं था
    जो करता शिनाख्त


    -झकझोर दिया इस रचना ने...

    बहुत आभार पढ़वाने का.

    जवाब देंहटाएं
  2. शिनाख्‍ती कविता बहुत पुख्‍ता है। शब्‍दकोश रचने के लिए जीना पड़ता है। शब्‍दों का पानी घूंट घूंट भरकर पीना पड़ता है। पर जहां चुल्‍लू भर पानी नहीं मिलता मरने के लिए, हवा लेकर ही जीना पड़ता है। हवा जो दूषित हो गई है। मानसिकता मनुष्‍य की सूअर हो गई है। और कहें क्‍या,कहे बिन रहें क्‍या, समझ लें खुद ही ...

    जीवन की गति का अहसास कराती कविताएं। उत्‍साह से लवरेज करती चलती हैं। एक एक शब्‍द में नए अर्थ भर देती हैं।

    जवाब देंहटाएं
  3. राजेश भैया ..पानी से लेकर मानवीय शिनाख्त चार की चारों कविताओं का जवाब नही सरल शब्दों में मानवीय भावनाओं का जो विश्लेषण प्रस्तुत करते है आप सब कुछ कमाल का है....सुंदर रचनाओं के लिए हार्दिक बधाई..नमस्कार

    जवाब देंहटाएं
  4. मुझे लगता है एक बार में एक कविता देने पर उचित न्याय होता इन रचनाओं से ...
    खैर ...
    पानी की वाकई कमी हो गयी है हर स्थान पर ... :-)

    जवाब देंहटाएं
  5. पानी
    उतर गया है
    जमीन में नीचे
    बहुत नीचे
    इतना जितना कि
    आदमी अपनी आदमीयत से

    यही स्थिति है.......

    उनके शब्द कोश में
    मेरे हर शब्द के लिए एक विलोम अर्थ है
    मेरे हर तर्क के लिए एक विलोम तर्क है

    पता नहीं ये कौन सा अहम् है !

    शब्दों
    के खेल में बचाकर रखे थे
    ढाई आखर
    बारी आने तक
    असली अर्थ खो चुके थे वे

    .. जीवन कहीं भी ठहरता नहीं है
    अर्थ बेमानी हो जाते हैं ...

    हर रचना बहुत ही प्रभावशाली है, जीवन के रास्ते दिखाती हुई

    जवाब देंहटाएं
  6. राजेश जी की रचनाये कहन में जितनी सरल हैं उतनी ही मारक हैं...शब्द शब्द चोट करती हुई ये रचनाएँ विलक्षण हैं...आज की त्रासदियों और गिरते मूल्यों को बहुत बेबाकी से प्रदर्शित करती हैं...इन अद्भुत रचनाओं को हम तक पहुँचाने के लिए शुक्रिया...
    नीरज

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  7. rajesh jee ,
    namaskar !
    aap ki kavitae dil ko choone wali hai , ek badh karati hai , paani ki baat karne to aaj aadami apni pehchan bhi khota jaa raha hai , apni aadamiyat . choti kavitae aur bhi achchi lagi , sdhuwad ,
    subhas jee namaskar , aap ka aabhar jo hume oomda kavitae padhne ko mili
    saadar

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  8. सभी रचनायें जीवन के किसी ना किसी पहलू को ही इंगित करती हैं………………हर रचना जीवन दर्शन कराती है………………सतीश जी का कहना सही है अगर इन्हें एक एक कर के लगाया जाता तो अलग ही प्रभाव आता और हर कोई उसका सही मनन और विश्लेषण कर पाता।

    जवाब देंहटाएं
  9. आज के मानव की मानवता का सही चित्रण करती सशक्त कविताये |
    अपना अस्तित्व बनाए
    रखने के लिए
    यह जरूरी है
    उनकी अपनी रणनीति में

    आश्चर्य
    कि मेरे शब्दकोश में
    दोस्त का अर्थ
    अब तक वही है।
    बेहद सटीक \आदमी के बदलते चरित्र का सही चित्रण |क्या राजनीती कण कण में समां गई है जो विलोम अर्थ ही शेष रह गये |

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  10. बाऊ जी,
    नमस्ते!
    काफी क्लास पढ़े लगते हैं आप! 'पानी' पानी-पानी करने की क्षमता रखती है! मौला मेरी आँख का पानी ना सूखे!!!
    'इच्छाएं' में पहले कविता की पहली पंक्ति 'चुक' के स्थान पर 'चूक' सही ना होगा?
    द्वारा
    फूहड़ हसोड़

    जवाब देंहटाएं
  11. चारों कविताएं इस बात का स्पष्ट प्रमाण हैं कि राजेश जी तक पहुंचने के रास्ते बहुत सीधे-साधे हैं। कहीं कोई घुमाव या चक्करदार रास्ता नहीं। पहली पंक्ति पढ़िये और कवि से सीधे जुड़ जाइए। बड़ी बात भी सीधे-सादे शब्दों में कही जा सकती है मेरी इस धारणा को इन पंक्तियों से बल मिलता है-पानी
    उतर गया है
    जमीन में नीचे
    बहुत नीचे
    इतना जितना कि
    आदमी अपनी आदमीयत से
    इन कविताओं को पढ़ते-पढ़ते मैं सोच रहा हूं कि क्या कविता की समीक्षा का एक पक्ष यह नहीं होना चाहिए कि उन कविताओं ने सबसे पहले अपने कवि का कितना निर्माण किया है-
    आश्चर्य
    कि मेरे शब्दकोश में
    दोस्त का अर्थ
    अब तक वही है
    इनसे स्पष्ट है कि कविताएं अपने उद्देश्य में सफल हैं।
    बड़ों से एक बात और कि यहां जितनी भी बातें हुई वो सब कविताओं के कथ्य को लेकर हुईं. नई कविता के शिल्प की जानकारी मुझे नहीं है। अगर हो सके तो इस पर भी रोशनी डालने की कृपा करें।
    राजेश जी को बधाई के साथ

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  12. न पानी रहा
    न पानीदार लोग
    पानी न आंखों में है
    न चेहरे पर
    .. संवेदनहीन होती मानवता का सटीक चित्रण

    शायद
    अपना अस्तित्व बनाए
    रखने के लिए
    यह जरूरी है
    उनकी अपनी रणनीति में
    आश्चर्य
    कि मेरे शब्दकोश में
    दोस्त का अर्थ
    अब तक वही है।
    ...भले इंसान सदैव अपनी भलमनस के लिए ही जाने जाते है .. फितरत बदलना मतलबी इंसानों को ही भाता है ... बेहद प्रभावपूर्ण

    शब्दों
    के खेल में बचाकर रखे थे
    ढाई आखर
    बारी आने तक
    असली अर्थ खो चुके थे वे

    .. जीवन की निरंतरता यही तो है समय के साथ अर्थ बदलते देर कहाँ लगती ...


    देखा
    जिसने भी
    वह अपरिचय
    के भाव से भर उठा
    इस तरह
    जैसे वर्षों से नहीं मिला
    मुझसा कोई
    पहचानने
    से इंकार कर दिया
    दोस्तों ने
    रीझते थे
    जो बातों पर मेरी
    हमनिवाला हमप्याला थे
    .....संवेदनहीन और जीवन मूल्य खोते इंसान की आज की स्थिति के यथार्थ प्रस्तुति ...

    उत्साही जी ने अपनी सशक्त सम्पादकीय और समीक्षायुक्त लेखनी से कविताओं के माध्यम से समाज में व्याप्त मानवीय और जीवन मूल्यों से दूर होते इंसान के दर्द को बखूबी प्रस्तुत किया है..
    सार्थक प्रस्तुति हेतु हार्दिक शुभकामनाएँ

    जवाब देंहटाएं
  13. आपकी सारी कवितायेँ पढ़ी...बहुत कुछ आपके लेखन के बारे में बता गयी. आपका प्रतिबिम्ब झलकता है आपकी कविताओ में.सबसे अच्छी ये पंक्तिय पसंद आई


    पानी
    उतर गया है
    जमीन में नीचे
    बहुत नीचे
    इतना जितना कि
    आदमी अपनी आदमीयत से।

    ......


    यहां
    तक कि
    भावशून्य रहा
    चेहरा उनका, लबों पर
    नहीं हुई जुंबिश
    जिन पर थिरकती थीं
    तितलियां मुस्कान की
    मेरे होने भर के अहसास से
    अपना
    कटा हुआ सिर
    लिए घूमता रहा मैं
    सड़क पर बदहवास
    कल रात

    सच में आज के यथार्थ से परिचय करवा गयी.

    बहुत सुंदर

    जवाब देंहटाएं
  14. @आभार सुभाष भाई का। सचमुच साखी पर मेरी कविताओं को एक नया क्षि‍तिज मिला।
    @आभार समीर भाई का कि पहली टिप्‍पणी उनकी मिली।
    @शुक्रिया रश्मि जी,वंदना जी,कविता जी,अनामिका जी,शोभना जी कि आप सबने मेरी कविताओं को बहुत ध्‍यान से पढ़ा ।
    @अविनाश भाई का स्‍नेह मिलता रहा है,इस बार भी मिला। राम त्‍यागी जी,नीरज जी, विनोद भाई,सुनील जी,जाकिर भाई,सतीश जी और संजीव भाई की समीक्षात्‍मक प्रतिक्रियाओं से बहुत हौंसला मिला है।
    @आशीष भाई 'इच्‍छाएं' कविता में चुक शब्‍द की जगह चूक नहीं आ सकता। दोनों के अर्थ अलग हैं। यहां शब्‍दों के चुकने की ही बात हो रही है,जिसका अर्थ है कि आपके पास कुछ नहीं बचा। चूकने का अर्थ है आपका निशाना चूक गया या आप गाड़ी चूक गए।

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  15. चारों कविताएँ अच्छी ,न पानी न पानी दार लोंग बहुत सही....

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  16. सभी कविताएँ बेहतरीन हैं.पानी का दर्द, दोस्ती का अर्थ और ज़माने की सच्चाई बयान करती कविताओं के बीच संदेश देती क्षणिकाएँ मंत्रमुग्ध कर देती हैं.

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  17. इतने बड़े रचनाकार की कविताओं पर कुछ कहना, छोटा मुंह बड़ी बात जैसा लगता है. पानी वाली कविता का तो जवाब नहीं. विलोम अर्थ के बारे में तो कहना ही क्या. डॉ. सुभाष राय ने तो शायद तय कर लिया है कि बेहतरीन रचनाकारों को बख्शेंगे नहीं.
    राजेश जी की कविताओं की सबसे ख़ास विशेषता यह है कि उनकी रचनाएँ कम शब्दों में बहुत कुछ कह जाती हैं.
    एक राज़ की बात बताऊँ-मैं कोशिश कर के भी आलोचना के लिए कोई पंक्ति ढूंढ नहीं सका.
    सतीश सक्सेना की बात का मैं भी समर्थन करता हूँ कि एक वक्त में एक रचना.

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  18. Rajesh Utsahee kee sabhee kavitaaon ne jadoo
    kee tarah sar par hee chadh kar nahin bolee,
    dil mein utree hain.

    जवाब देंहटाएं
  19. बहुत ही लाजवाब ... राजेश जी के सभी कविताएँ आज के समाज पर .... सामाजिक मान्यताओं पर करारी चोट करती हैं ... कल रात ... ये रचना तो अध्बुध है ... आज के माहॉल का जीता जागता चित्रण ....

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  20. @ आभारी हूं प्राण जी का, उन्‍होंने यहां साखी में आकर मेरी कविता का मान बढ़ाया। प्राण जी क्षमा करें,मेरी कविता की सफलता इस बात में नहीं है कि वह सिर पर जादू की तरह चढ़कर बोले। निसंदेह वह आपके दिल में उतर गई है, मैं उसे रचने में सफल हुआ हूं।

    @सतीश जी,वंदना जी तथा सर्वत जी ने कहा कि अगर एक बार में एक ही कविता प्रस्‍तुत की जाती तो बेहतर था। बात एक हद तक सही है। पर मैं समझता हूं कि साखी कविता के बहाने कवि की समीक्षा का मंच है। हां यह जरूर है कि माध्‍यम कविता ही है। इसलिए किसी एक कविता के आधार पर आप कवि के बारे में बात नहीं कर सकते। उसकी रचनाधर्मिता के बारे में बात करने के लिए आपके पास उसकी कविता की विविधता होनी चाहिए।

    ए‍क और बात। यहां प्रस्‍तुत चार छोटी कविताएं स्‍वतंत्र हैं। पर अगर उनको इसी क्रम में एक साथ पढ़ा जाए तो वह एक और कविता का अर्थ देती हैं।
    @ आभा जी,देवेन्‍द्र जी और दिगम्‍बर जी का भी आभारी हूं।

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  21. Rajesh bhaiya.......aapki saari rachnayen ! apne ko alag shreni me rakhti hai......aapke soch ko salam!!

    "na raha paani
    na rahe panidaar log.......:)"

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  22. राजेश जी ,कवितायेँ थोड़े में ही बहुत कुछ कह गईं हैं ...सिर कटे से आप का तात्पर्य अहम विहीन से ही है न , सचमुच जब तक आदमी फलाँ फलाँ का मुखौटा लगाए रहता है ,लोग भी उसकी कीमत चढ़ाये रहते हैं , हम खुद को कुछ नहीं समझते तो न दोस्त पहचानते हैं न ही दुश्मन को कोई फर्क पड़ता है , कैसी विडम्बना है ।

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  23. rajesh ji ki kavitayeen gulmohar mein aksar padhti hoon..unka andaaz nirala hai..!

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  24. बेहद उम्दा रचनाएँ हैं राजेश जी !
    कल रात
    अपना कटा हुआ सिर
    लिए घूमता रहा मैं
    सड़क पर आवारा
    कोई
    नहीं था
    जो करता शिनाख्त
    बेहतरीन .....

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  25. किस कविता के बारे में लिखूं.सब एक से बढ़कर एक.यूँ ही लिखते रहें.

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  26. पानी नहीं है अब ...
    जमीन में भी नहीं
    आँखों में भी नहीं ....

    अपना अस्तित्व बनाये रखने के लिए जरुरी है उनका विलोम होना ...
    बहुत खूब ...यही सत्य है ...!

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  27. कुछ कहना बस ऊपर की बातें दोहराना होगा...आत्मसात किये जा रहा हूँ ये शब्द..विलक्षण ऐसी ही किसी चीज को कहते होंगे शायद.

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  28. @शुक्रिया मुकेश भाई इस सम्‍मान के लिए।
    @ शुक्रिया संगीता जी चर्चा मंच में शामिल करने के @शारदा जी कवि का अपना परिप्रेक्ष्‍य होता है और पाठक का अपना। आपने जो परिप्रेक्ष्‍य रखा, कविता को उसके प्रकाश में भी पढ़ा जा सकता है। शुक्रिया।
    @शुक्रिया पारुल। आप गुलमोहर पर आती रहें।
    @शुक्रिया शिखा जी,वाणी जी और विवेक जी।
    @शुक्रिया संध्‍या जी। आपने कुछ न कहकर भी बहुत कुछ कह दिया।
    @शुक्रिया अविनाश।

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  29. बाबा भारती जी,
    एक साथ आप पूरा मधुशाला लुटा दिए हैं हमसब पर... पहिला वाला अच्छा है, दूसरा उससे अच्छा, अगिला अऊर अच्छा... अंत तक आते आते लगा कि हम नशा का सागर में डूब गए हैं... चाहे ऊ मर गया पानी हो या शिनाख्त के लिए आवारा दौड़...
    हमको लगता है कि एक एक करके पिलाइए, ताकि नशा का आनंद अऊर बढे... बेंगलुरू आगमन पर स्वागत..अब आपका आमद बना रहेगा उम्मीद करते हैं..
    खडगसिंह

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  30. @भाई खडगसिंह जी उर्फ सलिल भाई। अपना मधु और शाला दोनों औरों के लिए ही है। जो जितना आनंद ले सके ले। आप नशे के सागर में डूबे आभार। पर जल्‍द ही ऊपर आ जाइए वरना आप सबका जो स्‍नेह मिला है उसका मैं उपयोग कैसे करूंगा।

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  31. बहुत अच्छी कविताये है ,और राय साहब आपने ये बहुत अच्छा मंच दिया है ,बधाई

    जवाब देंहटाएं
  32. सभी कवितायेँ बहुत उम्दा हैं खासतौर पर "पानी"

    जवाब देंहटाएं
  33. na paani raha
    na paanidar log .

    vakai , bahut hi sundar panktiyan hain . Ham sabhi jante hain ki aaj ke sandarbh mein yah baat har tarah se sateek hai . Bahut - bahut acchi .

    जवाब देंहटाएं
  34. राजेश जी आपकी हर रचना एक सन्देश देती हुई है....पढ़ तो पहले ही लीं थीं पर टिप्पणी नहीं कर पाई...

    अब आदमी में पानी कहाँ ....आँख का पानी ही मर चुका है...

    और विलोम अर्थ वाली रचनाएँ सभी बहुत अच्छी लगीं

    जवाब देंहटाएं
  35. कल रात
    अपना कटा हुआ सिर
    लिए घूमता रहा मैं
    सड़क पर आवारा
    कोई
    नहीं था
    जो करता शिनाख्त
    हर एक कविता अपने आप में बेमिसाल है.पर एक बार पढ़ कर जी नहीं भरा दुबारा आऊँगी

    जवाब देंहटाएं
  36. @शुक्रिया चंद्रप्रकाश जी,पारुल,नसीम,संगीता जी। शुक्रिया रचना जी, मेरी कविता आपको फिर से खींच लाए यह मेरी एक और उपलब्धि है।

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  37. कविताएं अभी फिर से पढ़ी. 'कल रात' पढ़कर तो काफी देर तक कुछ सूझता ही नहीं. आउटसाइडर के बेगानेपन की स्थिति का ऐसा चित्रण ही उन विसंगतियों को रेखांकित कर रहा है, जो वास्‍तव में दिन दहाड़े और सरे आम हैं.

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हां, आज ही, जरूर आयें

 विजय नरेश की स्मृति में आज कहानी पाठ कैफी आजमी सभागार में शाम 5.30 बजे जुटेंगे शहर के बुद्धिजीवी, लेखक और कलाकार   विजय नरेश की स्मृति में ...